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दुल्ला भट्टी के बिना अधूरा है लोहड़ी का त्योहार, जानें इससे जुड़ी कहानी

लोहड़ी, जो पूरे देश में बड़े हर्ष और उत्साह के साथ मनाया जाता है, एक अनूठा और रंगीन त्योहार है जो पंजाब और हरियाणा के लोगों के लिए अद्वितीय है। इसे मुख्यत: 13 जनवरी को मनाया जाता है, लेकिन इस वर्ष पंचांग के अनुसार, यह 14 जनवरी को है। लोहड़ी के त्योहार की अद्वितीयता में दुल्ला भट्टी की कहानी का महत्वपूर्ण योगदान है, जो इस त्योहार को और भी गहरा बनाता है।

दुल्ला भट्टी, पंजाब क्षेत्र से जुड़े एक शौर्यात्मक योद्धा थे, जो मुग़ल शासन के खिलाफ अपनी बहादुरी और साहस से प्रसिद्ध थे। उनके पिता फरीद खान और दादा संदल भट्टी की हत्या ने उन्हें एक नायक बना दिया था, और इस बलिदान ने उन्हें लोहड़ी के उत्सव के साथ जोड़ दिया।

दुल्ला भट्टी का जीवन और प्रतिरोध

उनके परिवार की न्याय और स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध रहते हुए, दुल्ला भट्टी ने अपने वीरता और पराक्रम से भरी ज़िंदगी जी। उन्होंने मुग़ल साम्राज्य के खिलाफ उत्साहपूर्वक आंदोलन किया और अपने प्रयासों में अपने परिवार की इज्जत को बचाने का प्रतिबद्ध रहा।

 “सुंदरी और मुंदरी” भट्टियों के इतिहास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यह कथा 16वीं शताब्दी के पंजाब के एक छोटे से गांव में उत्पन्न हुई, जहां भट्टियों का साम्राज्य था और मुगलों के साम्राज्य के समय में इसका असर हुआ।

यह लोककथा पिंडी भट्टियां गाँव के राजपूत मुस्लिम सरदारों की शक्ति पर आधारित है, जो मुगल साम्राज्य द्वारा कब्ज़ा किया गया। इस क्षेत्र में भट्टी वंश के राजा, जैसे कि फरीद भट्टी और उनके पिता बिजल (या संदल) भट्टी, ने किसानों के साथ विद्रोह किया और जबरन वसूली के खिलाफ उठ खड़े हुए।

इस विद्रोह के परिणामस्वरूप फरीद भट्टी और उनके पिता को अकबर के शासनकाल में देशद्रोह के आरोप में फाँसी पर लटका दिया गया। इस अवसर पर उनकी पत्नी ने अपने इकलौते बेटे, अब्दुल्ला को जन्म दिया, जिसे गाँववाले प्यार से ‘दुल्ला’ कहते थे, और उसे अपने पिता की विरासत से बचाने के लिए उसकी माँ ने उनकी मृत्यु को गुप्त रखा।

ऐसा माना जाता है कि दुल्ला भट्टी ने लड़की को जमींदार से बचाया था, और जब उसके चाचा ने उसे वापस लेने से इनकार कर दिया, तो दुल्ला आगे आया। उसने मुंदरी को पाला और बाद में उससे शादी कर ली – कुछ लोग कहते हैं कि शादी लोहड़ी की रात को हुई थी।

दुल्ला भट्टी और लोहड़ी का उत्सव

दुल्ला भट्टी की शौर्यगाथा और उनकी वीरता ने लोहड़ी को एक ऐतिहासिक और साहसी त्योहार में बदल दिया है। उनकी बलिदानी जीवनी ने इस त्योहार को भारतीय सांस्कृतिक विरासत में शामिल किया है और लोगों को उनके साहस और निष्ठा की ओर प्रेरित किया है।

हर वर्ष, लोग लोहड़ी के दिन मिलकर खुशियों का उत्सव मनाते हैं। बोनफायर के आसपास नृत्य करना, गाने गाना और मिठाई बांटना, सभी इस त्योहार को अपने परिवार और समुदाय के साथ बिताने का एक अद्वितीय तरीका मानते हैं।

लोहड़ी एक महत्वपूर्ण पर्व है जो हमें दुल्ला भट्टी जैसे वीरों की बलिदानी जीवनी से मिलाता है और हमें याद दिलाता है कि साहस और न्याय के लिए खड़ा होना कभी भी महत्वपूर्ण है। इस लोहड़ी, हम दुल्ला भट्टी की श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनकी वीरता को समर्थन करते हैं, जिसने अपने प्राणों की आहुति देकर न्याय और स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व अर्पित किया।

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