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Explained: Sheikh Hasina Comes to India| Military Takeover In Bangladesh
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बांग्लादेश का राजनीतिक संकट: शेख हसीना और भविष्य की चुनौतियाँ

Explained: Sheikh Hasina Comes to India| Military Takeover In Bangladesh

Explained: Sheikh Hasina Comes to India| Military Takeover In Bangladesh
Explained: Sheikh Hasina Comes to India| Military Takeover In Bangladesh

बांग्लादेश का राजनीतिक संकट: शेख हसीना और भविष्य की चुनौतियाँ

शेख हसीना की भारत यात्रा और संभावित ब्रिटेन प्रवास

बांग्लादेश वर्तमान समय में एक राजनीतिक संकट से गुजर रहा है वहां से तख्ता पलट की खबरें आ रही हैं और बांग्लादेश के प्रधानमंत्री शेख हसीना भारत आ गई हैं और अब बताया जा रहा है कि वह भारत से ब्रिटेन जा सकती हैं|

 ऐसे में यह जानना जरूरी है कि भारत का एक इंपॉर्टेंट पड़ोसी देश जिसके, भारत के साथ संबंध बहुत गहरे रहे हैं उस पड़ोसी देश में ऐसी क्या वजह रही कि वह तख्ता पलट के कगार पर पहुंच गया।

  शेख हसीना कौन है? शेख हसीना का जीवन और उनका राजनीतिक सफर

शेख हसीना दुनिया में सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाली महिला प्रधानमंत्री है । इन्होंने 1996 से 2000 -2001 तक और उसके बाद 2009 के बाद से लगातार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री के तौर पर अपनी सेवाएं दी हैं।  उनके पित शेख मुजीबुर रहमान है जिनको बांग्लादेश के संस्थापक के नाम से भी जाना जाता है इनको बंगबंधु के नाम से भी जाना जाता है  शेख मुजीबुर के द्वारा एक पार्टी स्थापित की गई थी उस पार्टी का नेतृत्व  वर्तमान समय में शेख हसीना कर रही है।

1971 से 2023: बांग्लादेश का राजनीतिक इतिहास

 1971 में बांग्लादेश आजाद हुआ था।जिसके बाद 1975 में सेना के अधिकारियों की ओर से तख्ता पलट किया गया और इस तख्ता पलट की वजह से मुजीबुर रहमान की हत्या कर दी गई जिसके बाद इनकी पार्टी की कमान  शेख हसीना के हाथ में आ गई थी।

 शेख हसीना की पार्टी जिसका नाम है आवामी लीग वो कई वर्षों से बांग्लादेश में सत्ता में है इसके अलावा कई बार आवामी लीग पर चुनावों के साथ छेड़छाड़ करने के आरोप भी लगे हैं इसके अलावा जो रिसेंट चुनाव  बांग्लादेश में हुए थे वहां पर भी चुनाव के साथ  मैनिपुलेशन के आरोप शेख हसीना पर लगाए गए थे और इसी के चलते बांग्लादेश की जो तमाम विपक्षी पार्टियां थी उन्होंने इन चुनाव में हिस्सा लेने से इंकार कर दिया था।  उसके बावजूद भी बांग्लादेश में शेख हसीना की पार्टी  चुनाव जीत गई थी।

  वर्तमान समय में देखें तो बांग्लादेश में  दो धड़े दिखाई देंगे एक तरफ  आवामी लीग के लोग मौजूद हैं यानी कि शेख हसीना की पार्टी , दूसरी तरफ  बांग्लादेश की जनता एक दूसरे के विपक्ष में  खड़े है।

आरक्षण प्रणाली के खिलाफ विरोध और उसकी जड़ें

 वर्तमान समय में  बांग्लादेश में कई शिक्षित युवा है जिनके सामने स्थाई रोजगार एक बड़ी समस्या है। बांग्लादेश में जो शिक्षित युवा हैं उनके बीच में सरकारी नौकरी बहुत ज्यादा प्रचलित है क्योंकि यह  युवाओं को एक स्थायित्व प्रदान करती है।

 बांग्लादेश में युवाओं द्वारा विरोध किया जा रहा था और यह विरोध खास तौर पर बांग्लादेश में जो रिजर्वेशन सिस्टम लागू है उस सिस्टम के खिलाफ  विरोध देखने को मिल रहा था क्योंकि बांग्लादेश के अधिकांश  युवा जो विश्वविद्यालयों में पढ़ रहे थे उनका यह मानना था कि, बांग्लादेश की जो कोटा प्रणाली है इस प्रणाली की वजह से युवा नौकरियां प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं।

  बांग्लादेश में 50 % सीटें  आरक्षित हैं और इसमें भी 30 %  जो सीटें हैं वो सीटें  बांग्लादेश में 1971 के दौरान जो स्वतंत्रता संग्राम हुआ था उस स्वतंत्रता संग्राम में जिन लोगों ने  सैनिकों ने भाग लिया था उनके रिश्तेदारों के लिए 30% सीटों को रिजर्व किया गया है।

आवामी लीग ने 1971 में बांग्लादेश में लिबरेशन वॉर में इंपोर्टेंट रोल प्ले किया था तो बांग्लादेश में जो अधिकांश स्वतंत्रता सेनानी हैं वो आवामी लीग का ही हिस्सा है । इस कोटा पॉलिसी की वजह से खुद शेख हसीना की पार्टी के जो मेंबर्स हैं केवल उन्हीं मेंबर्स को फायदा हो रहा है और दूसरे लोगों को इसका फायदा नहीं मिल रहा, जिसके खिलाफ बांग्लादेश में सबसे पहले यूनिवर्सिटीज में विरोध प्रदर्शन शुरू होते हैं शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन शुरू होते हैं फिर धीरे-धीरे यह जो पूरी आग है यह बांग्लादेश के अन्य विश्वविद्यालयों में फैलती है यह प्रदर्शन बड़े  होते जाते हैं और अंततः प्रदर्शन इतने बड़े हो जाते हैं कि बांग्लादेश के प्रधानमंत्री को अपना देश ही छोड़ना पड़ता है।

विकास के बावजूद युवाओं में असंतोष का कारण

  बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने देश के बुनियादी ढांचे को सुधारने के लिए बहुत सारे प्रोजेक्ट्स की शुरुआत की है इसके अलावा आम लोगों की आय में भी बढ़ोतरी हुई है मानव संसाधन के जो तमाम संकेतक हैं उनमें भी  बढ़ोतरी देखने को मिली है और बढ़ोतरी इस हद तक रही है कि बांग्लादेश ने भारत की तुलना में भी काफी बेहतर प्रदर्शन किया है ।

 यहां पर समस्या यह है कि बांग्लादेश में  जो अधिकांश विकास हुआ है यह विकास केवल कुछ इंडस्ट्रीज तक ही सीमित है जैसे कि बांग्लादेश की एक प्रमुख इंडस्ट्री है , टेक्सटाइल इंडस्ट्री यानी कि कपड़ा उद्योग  जबकि बांग्लादेश के जो युवा  ग्रेजुएट लोग हैं जिन्होंने हाई स्टडीज की है वो टेक्सटाइल इंडस्ट्री में काम नहीं करना चाहते क्योंकि टेक्सटाइल इंडस्ट्री में जो है आपका मैनुअल लेबर बहुत ज्यादा होता है आपको फिजिकल काम बहुत ज्यादा करना पड़ता है जबकि युवा जो पढ़े-लिखे लोग हैं वो इस काम में इवॉल्व नहीं होना चाहते लेकिन विकास तो केवल टेक्सटाइल सेक्टर में हुआ है दूसरे सेक्टर अभी भी  कमजोर पड़े हुए हैं जिसकी वजह से युवाओं के पास प्राइवेट नौकरी के बहुत ज्यादा अवसर मौजूद नहीं है।

 शुरुआत में ये जो आंदोलन था बहुत शांतिपूर्वक तरीके से किया जा रहा था लेकिन उन्होंने इस पूरे आंदोलन को रजाकार का आंदोलन बता दिया इसके अलावा इस आंदोलन पर गोली चलाने के भी आदेश दिए गए सेना को शामिल करने के भी आदेश दिए गए तो ये तमाम वजह रही जिनकी वजह से  यह आंदोलन इतने बड़े लेवल पर पहुंच गया।

बांग्लादेश में इस्लामी चरमपंथ का उभार

कई जानकारों का मानना है कि इस पूरे आंदोलन की वजह से बांग्लादेश में  इस्लामी चरमपंथ की पुनः शुरुआत देखने को मिल सकती हैं  अब क्योंकि बांग्लादेश की राजनीति से शेख हसीना लगभग समाप्त हो गई हैं तो इसकी वजह से कई जानकारों का यह कहना है कि अब बांग्लादेश की राजनीति में आपको कट्टरपंथी उग्रवाद और फंडामेंटलिज्म हावी होता हुआ नजर आ सकता है ।

भारत-बांग्लादेश संबंधों में संभावित परिवर्तन और चुनौतियाँ

  इस घटना की वजह से भारत पर जो अनिश्चितताए उत्पन्न होंगी वह बहुत गंभीर हो सकती हैं गंभीर इस वजह से हो सकती हैं क्योंकि बांग्लादेश  भारत का पड़ोसी देश है और बांग्लादेश के साथ भारत के संबंध  ऐतिहासिक तौर पर बहुत बेहतर रहे हैं बांग्लादेश के स्वतंत्रता में भारत ने एक इंपॉर्टेंट रोल प्ले किया था | उसके अलावा एक से अधिक दशक तक  वहां पर शेख हसीना की सरकार रही है और शेख हसीना की सरकार के साथ भारत के संबंध बहुत मजबूत रहे, संबंधों को एक नई ऊंचाई प्राप्त हुई।

हमारे बीच में जो सीमा पार व्यापार होता है बहुत ज्यादा मजबूत हुआ परागम व्यवस्था हमें देखने को मिली इसके अलावा सुरक्षा सहयोग देखने को मिला।  भारत के लिए एक बड़ी चुनौती आ सकती खास तौर पर डिप्लोमेटिक लेवल पर कि भारत अब बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को कैसे बढ़ाता है आगे अपने संबंधों को पहले जैसा कैसे किया जाता है  बांग्लादेश के पाकिस्तान के साथ  संबंध  और ज्यादा मजबूत होते हुए दिखाई दे सकते हैं तो इसकी वजह से इन संबंधों की मजबूती की वजह से भारत की सुरक्षा पर भी  खतरा पैदा हो सकता है और इसके अलावा चीन और पाकिस्तान के रिलेशंस पहले से ही बहुत ज्यादा मजबूत हैं । अगर इस पूरी इक्वेशन में बांग्लादेश भी शामिल हो जाता है तो भारत के लिए एक बड़ा चैलेंज हो सकता है।

निष्कर्ष

बांग्लादेश में चल रहे राजनीतिक संकट ने न केवल देश की स्थिरता को हिला कर रख दिया है, बल्कि भारत के लिए भी गहरे कूटनीतिक और सुरक्षा संबंधी सवाल खड़े कर दिए हैं। शेख हसीना के नेतृत्व में बांग्लादेश ने जो प्रगति की, वह अब अनिश्चित भविष्य के साए में है। इस संकट के बीच, भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह होगी कि वह बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को कैसे संतुलित और सुरक्षित रखे, खासकर तब जब कट्टरपंथी ताकतें सत्ता की दौड़ में आगे बढ़ सकती हैं।

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