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How USSR helped in 1971 war। Indo pak war 

How USSR helped in 1971 war। Indo pak war

1971 के युद्ध में यूएसएसआर की मदद: भारत-पाक संघर्ष की एक नई दास्तान

पूर्वी पाकिस्तान में आवाम जोरो से अपने लिए एक अलग देश बनाने के लिए आंदोलन कर रही थी और दूसरी तरफ पाकिस्तान, पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर जुल्म ढा रहा था| मर्दों को मारा काटा जा रहा था और औरतें पर तरह-तरह के अत्याचार किये जा रहे थे ऐसे में लगभग 1 करोड़ लोग पूर्वी पाकिस्तान से भाग कर भारत में शरण ले चुके थे। ऐसे हालात  में भारत को ना चाहते हुए भी पाकिस्तान के सिविल वार में इंवॉल्व होना पड़ा, लेकिन भारत ने युद्ध में हथियार तब तक नहीं उठाए थे जब तक की पाकिस्तान ने खुद आगे बढ़कर भारत के खिलाफ युद्ध नहीं छेड़  दिया।

 पाकिस्तान को जवाब देना जरूरी था और इसके लिए भारतीय सेना  तैयार बैठी थी । इसके बाद 1971 के वार में ना तो सिर्फ भारत विजय हुआ बल्कि एक नया देश बना बांग्लादेश, हालांकि इस युद्ध में सिर्फ बांग्लादेश का जन्म ही नहीं हुआ था बल्कि एक और सुखद घटना हुई थी जब यूएसएसआर भारत के खिलाफ खड़े अमेरिका और यूके के विरुद्ध भारत का साथ देने के लिए  बंगाल की खाड़ी  में अपने मिसाइल्स और न्यूक्लियर सबमरीन के साथ खड़ा हुआ था।

यूएसएसआर का समर्थन और विश्व राजनीति 

 1971 एक ऐसा वक्त था जब पूरी  दुनिया भारत के खिलाफ खड़ी थी भारत को घेरने की कोशिश कर रही थी। उस समय यूएसएसआर ही एक ऐसा देश था जिसने भारत के लिए दुनिया से दुश्मनी ले ली थी।

भारत पाकिस्तान वार के बीच एक समय ऐसा आया जब चीन, ब्रिटेन और अमेरिका एक साथ भारत के खिलाफ खड़े हो गए थे। अमेरिका ने भारत के खिलाफ अपना टास्क फोर्स 74 जिसे सेवंथ फिट भी कहा जाता था कुंभ मैदान में उतार दिया था। ऐसे में रसिया ही मात्र ऐसा देश था जिसने ना सिर्फ अमेरिका को इस युद्ध में  शामिल होने से रोका बल्कि चीन को भी भारत के खिलाफ शामिल होने नहीं दिया।

पूर्वी पाकिस्तान का संघर्ष और मानवता का संकट

 बात 1971 की है पड़ोसी देश पाकिस्तान में सिविल वार अपने चरम पर था। 1947 में धर्म का नाम लेकर पाकिस्तान भारत से तो अलग हो गया लेकिन अपने देश के अंदर दो अलग-अलग आईडियोलॉजी के बीच टकराव रोक नहीं पाया। रिजल्ट ये हुआ कि पाकिस्तान दो हिस्सो में बांट गया एक पाकिस्तान और दूसरा बांग्लादेश सच्चाई तो यह है की इस बंटवारे की नीव उस वक्त पड़ गई थी जब आजादी के बाद जिन्ना ने अपनी स्पीच में कहा था पाकिस्तान की राष्ट्रभाषा सिर्फ उर्दू ही रहेगी।

जबकि पूर्वी पाकिस्तान में आबादी बांग्ला भाषा की थी ऐसे में उर्दू के राष्ट्रभाषा बनने से पूर्वी पाकिस्तान के लोग खुश नहीं थे । यहां बांग्ला बोलने वाले लोगों की संख्या अधिक थी वही वेस्ट पाकिस्तान में ज्यादातर उर्दू बोली जाति थी |और इधर के लोगों की मेंटालिटी भी अलग थी ये खुद को सुपीरियर मानते थे बात-बात पर पूर्वी पाकिस्तान के साथ भेदभाव करते थे यहां तक गवर्नमेंट की पॉलिसी और मिलिट्री का पावर भी इन्हीं वेस्टर्न पाकिस्तानियों के हाथ में थी।

 इसके बाद 1970 में पाकिस्तान में चुनाव हुए पूर्वी पाकिस्तान की आवामी लीग पहली बार 313 में से 167 वोट प्रकार चुनाव जीत गई ।पार्टी की और से मुजेबुर रहमान को प्रधानमंत्री बनाने की तैयारी हो रही थी लेकिन वेस्ट पाकिस्तान को यह बात अच्छी नहीं लगी पाकिस्तान की मिलिट्री पाकिस्तान इलेक्शन कमीशन और वेस्ट पाकिस्तान लीडर्स सब ने एक साथ मिलकर इलेक्शन को ही कैंसिल कर दिया। चुनाव जीत जाने  के बाद भी मुजीबुर रहमान को कुर्सी नहीं दी गई।

 जो डिस्क्रिमिनेशन पूर्वी पाकिस्तान सालों से महसूस करता आया था इलेक्शन कैंसिल होने के बाद उसे देख भी लिया था इस बार  पाकिस्तान के लोग इस भेदभाव को सहन नहीं कर पाए और उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ बगावत कर दी और अपने लिए एक इंडिपेंडेंस देश बांग्लादेश की मांग कर दी।

इसके बाद फिर पाकिस्तान का जुल्म शुरू होता है 30 लाख से ज्यादा लोगों का कत्लेआम हुआ, लाखों औरतें की आबरू लूटी गई ।स्कूल ,हॉस्पिटल, हर तरफ पाकिस्तान की सेना  निर्दोषों पर लाठियां और गोलियां बरसा रही थी। लाखों की संख्या में लोग पाकिस्तान से भाग कर भारत में प्रवेश करने लगे|

भारत की अनिवार्य भागीदारी और युद्ध की शुरुआत

भारत जिसके अभी बंटवारे के घाव भरे भी नहीं थे लाखों की संख्या में आ रहे रिफ्यूजी का बोझ कैसे झेल  पता। बॉर्डर के अंदर बढ़ रहे रिफ्यूीस और उनकी सिचुएशन देखकर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस बात को इंटरनेशनल लेवल पर उठाने की कोशिश की। बार-बार अपनी परेशानी समझाने के बाद भी अमेरिकन प्रेसिडेंट निक्सन भारत की मजबूरी को समझने  को तैयार नहीं हुए ।

 पाकिस्तान ईस्ट पाकिस्तान में होने वाले जुल्मों की जिम्मेदारी लेने की बजाय पुरी दुनिया से अपनी सच्चाई छुपाने पर लगा हुआ था पूर्वी  पाकिस्तान पर जुल्म में ढाने  के साथ-साथ पाकिस्तान आर्मी ने भारत के खिलाफ अटैक भी प्लेन कर रखा था इसी प्लेन के हिसाब से 3 दिसंबर को पाकिस्तान एयरफोर्स ने भारत के 11 एयरफील्ड्स पर बमबारी करी और इसके अलावा कश्मीर के कई आर्मी बेसिस में भी अटैक किया  लेकिन पाकिस्तान आर्मी को जितने सक्सेस की उम्मीद थी उतनी नहीं मिली और ना ही इंडियन और फोर्स न्यूट्रलाइज हो सके बल्कि उल्टे भारतीय सैनिक और अधिक क्रोध से भर गए और पाकिस्तान को युद्ध का जवाब देने के लिए तैयार हो गए जवाब में भारत ने भी अपनी तरफ से  पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध  डिक्लेअर कर दिया।

अमेरिकी और ब्रिटिश हस्तक्षेप की योजना

 अमेरिका जो पहले से ही पाकिस्तान की तरफदारी में था वह नहीं चाहता था कि भारत ,पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध लड़े भारत ने नॉन एलाइनमेंट पॉलिसी क चुनाव जरूर किया था लेकिन हमारे देश के रिश्ते यूएसएसआर के साथ हमेशा से अच्छे रहे थे। उधर दूसरी तरफ अफगानिस्तान और चीन ऑलरेडी यूएसएसआर के साथ आ चुका था और कम्युनिज्म को खुलकर सपोर्ट कर रहे थे ऐसे मैं अमेरिका एशिया में कम्युनिज्म को कंटेन करने के लिए पाकिस्तान को अपना मित्र  बना लेता  है ।

पाकिस्तान अमेरिका के लिए कोल्ड वार में साउथ एशिया में हॉट सीट था जिसे अमेरिका हर हाल में सपोर्ट करना चाहता था लेकिन भारत के इरादे साफ थे पूर्वी पाकिस्तान के साथ हुए अन्याय  ने इंदिरा गांधी को अंदर से झकझोर कर रख दिया था और उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान को फ्रीडम दिलाने कानिर्णय ले लिया था ।

जनरल माणिक शोर जगजीत सिंह अरोड़ा की लीडरशिप में इंडियन मिलिट्री पाकिस्तान की सीमा में बढ़ती चली गई हमारे देश के जवानों ने पाकिस्तान की सर जमीन को हिला के रख दिया।  पाकिस्तान का यह हाल देखकर अमेरिका बौखला चुका था अमेरिका को अब लगने लगा था की भारत कही पूर्वी पाकिस्तान को भी ना कैप्चर कर ले । इसीलिए वार के बीच भारत के सभी दुश्मन देश एक साथ मिलकर पाकिस्तान की मदद में आ गए ।

अमेरिका भारत पर दबाव बनाने की कोशिश करने लगा। अमेरिकन प्रेसिडेंट रिचर्ड निक्सन ने इंडियन एम्बेसडर  झा को बुलाकर अपने तरफ करने की कोशिश की और साथ ही भारत से अच्छे संबंधों की बात आगे बढ़ाने की बात की। लेकिन इन बातो से उस का मतलब साफ था की अगर पाकिस्तान भारत का युद्ध हुआ तो अमेरिका भारत के साथ खड़ा नहीं होगा।

 एक तरफ भारत की मिलिट्री पाकिस्तान के खिलाफ करवाई कर रही थी इस समय भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी रामलीला मैदान में एक बहुत बड़ी जन सभा में भाषण दे रही थी उन्होंने खुले आम कहा की कुछ बाहरी तख्त हमारे देश को धमकाने का कम कर रही है लेकिन हम डरने वालों में से नहीं है उनका मुंह तोड़ जवाब दिया जाएगा ।

अमेरिका ने टास्क फोर्स 74 को वियतनाम से बंगाल की खड़ी की तरफ भेज दिया उस समय ये विश्व का सबसे बड़ा एयरक्राफ्ट करियर था, इस एयरक्राफ्ट में 70 फाइटर जेट्स और बॉम्बर्स थे इसके अलावा इसके साथ गाइडेड मिसाइल, क्रूजर, गाइड मिसाइल डिस्ट्रॉयर  भी थे ।भारत के पास उस समय एकमात्र एयरक्राफ्ट करियर आईएनएस विक्रांत था जिसकी तुलना में अमेरिका का सेवंथ फिट बेड़ा काफी बड़ा और पावरफुल था।

 वार शुरू होने से 4 महीने पहले 9 अगस्त 1971 को ही इंडिया ने रसिया के साथ इंडो सोवियत ट्रीटी ऑफ फ्रेंडशिप और कोऑपरेशन ऑफ 1971 पर सिग्नेचर कर लिया था। जिसमें एक नियम ऐसा भी था की जब भी भारत पर कोई फॉरेन पावर अटैक करेगा तब यूएसएसआर को भारत की रक्षा करनी ही होगी|

यूएसएसआर की रणनीति और नौसेना की तैनाती

How USSR helped in 1971 war। Indo pak war

सोवियत इंटेलिजेंस ने ये बात पता कर ली की ब्रिटिश और अमेरिकन ने मिलकर भारत को बे ऑफ बंगाल में घेरने की प्लानिंग कर रखी है इसके लिए ब्रिटेन अपने एयरक्राफ्ट करियर एचआरएमएस ईगल के साथ हजारों टन बम और डिस्ट्रॉयर लेकर वेस्ट साइड से भारत को घेरने की कोशिश कर रहे हैं वही अमेरिकन एयरक्राफ्ट करियर बे ऑफ बंगाल में बांग्लादेश की तरफ से भारत को उलझाने के लिए निकल पड़ा है, जिसके बाद सोवियत गवर्नमेंट भारत की मदद के लिए तुरंत जाती  हैं।

वहीं दूसरी और 10th दिसंबर को इंडियन इंटेलिजेंस एजेंसी के हाथ अमेरिकन प्रेसिडेंट का वह मैसेज हाथ लगा जिसे उन्होंने अपने सेक्रेटरी किसिंजर के लिए था, जिसमें लिखा हुआ था की उनका 75000 टर्न न्यूक्लियर एयरक्राफ्ट करियर अपने निर्धारित स्थान पर पहुंच गया है इसके अलावा कुछ और बातें भी सामने आई जिसमें अमेरिकन प्रेसिडेंट निक्सन ने कहा था की जब तक भारतीय सैनिक पूरा पाकिस्तान छोड़कर वापस नहीं चले जाएंगे तब तक वह वरशिप आगे बढ़ता ही रहेगा |

अब अमेरिका की मंशा साफ हो गई थी इसके तुरंत बाद इंडिया ने सिक्योरिटी के तहत मास्को से मदद मांगी।  इसके बाद 13th दिसंबर को यूएसएसआर ने  एक 10th ऑपरेटिव बैटल ग्रुप के अंदर न्यूक्लियर आर्म्ड , दो टास्क फोर्स तैनात किये थे। भारत और USSR  के बीच हुई ट्रीटी की वजह से यूएसएसआर ने चीन को भी इस वार में भारत के खिलाफ नहीं बोलने दिया ब्रिटेन और अमेरिका मिलकर भारत को दो तरफ से घेर कर ईस्ट पाकिस्तान को अलग करने से रोकना चाहते थे लेकिन दूसरी तरफ इस दो तरफ खतरे का मुकाबला करने के लिए और इन्हें इंडियन कोस्टल के करीब जाने से रोकने के लिए यूएसएसआर अब पुरी तरह तैयार था |

इसी दौरान मास्को ने अपने मोस्टशिप को अमेरिकन और ब्रिटिश को, इंडियन वार जॉन के करीब जाने से रोकने का आदेश दिया अमेरिकंस को धोखा देने के लिए यूएसएसआर ने एक गजब की रणनीति अपनाई ।उन्होंने प्लान किया की जब अमेरिकन सामने आए तो सारी सबमरीन को सी लेवल पर उतार लिया जाए जिससे की अमेरिकन फ्लाइट को यह लगे की वो चारों तरफ से यू एस एस आर की सबमरीन से गिरे हुए हैं|

ऐसा ये दिखाने के लिए किया गया था की हिंद महासागर में यूएसएसआर ने कई सारे सबमरीन और डिस्ट्रॉयर लगा रखें हैं जिससे की अमेरिकंस धोखा खा  जाए और इंडिया पर किसी तरह का अटैक नहीं करें| यह प्लान यू एस एस आर के लिए काम कर गया थोड़ी ही देर  में यूएसएसआर के कमांडर ने सेवंथ फिट के कमांडर का मैसेज इंटरसेप्ट किया जिसमें ब्रिटिश वरशिप इन चार्ज एडमिरल गार्डन अमेरिकन सेवंथ फिट कैप्टन से का रहे थे की सर हमने काफी देरी कर दी है यहां ओसियन में पहले से उस और बड़ी भारी मात्रा में सबमरीन के साथ पहले से USSR आ  चुका है।

युद्ध का मोड़: भारतीय सेना का पराक्रम

 मैसेज मिलने के बाद यूएस की वार्षिप्स इंडियन वाटर टेरिटरी में इंटर करने के पहले ही रुक गई और श्रीलंका के तरफ से निकल गई वहीं दूसरी और ब्रिटिश सबमरीन ने भी मेडागास्कर का रुख कर लिया और इस तरह से यूएसएसआर की सूझबूझ ने आईएनएस विक्रांत का काम आसान कर दिया वही दूसरी और भारत की सेना का पराक्रम भी पूरे जोर शोर पर था|

भारत की सेना ने ढाका को तीनों तरफ से घेर लिया। ढाका में गवर्नर हाउस के अंदर पाकिस्तान के आला अधिकारियों की मीटिंग चल रही थी भारत की सेना गवर्नर हाउस तक जा पहुंचे हमले से घबराकर पाकिस्तान ने युद्ध विराम करने की बात कही लेकिन जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने यह कहकर माना कर दिया की अब कोई युद्ध विराम नहीं होगा सिर्फ पाकिस्तान को आत्मसमर्पण करना होगा|

बांग्लादेश का जन्म और युद्ध का अंत

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16th दिसंबर 1971 को 93000 सैनिकों के साथ पाकिस्तान के जनरल ने सरेंडर कर दिया और फिर इंदिरा गांधी की एक डिक्लेरेशन आई,ढाका अब स्वतंत्र है के साथ वार समाप्त हुआ ।

निष्कर्ष:

1971 के भारत-पाक युद्ध में यूएसएसआर की मदद ने भारत की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जब पूरी दुनिया भारत के खिलाफ खड़ी थी, यूएसएसआर ने अपने सशक्त समर्थन से न केवल भारतीय सेना का मनोबल बढ़ाया, बल्कि अमेरिका और चीन जैसी शक्तियों को भी भारत के खिलाफ सीधे हस्तक्षेप से रोक दिया।

यूएसएसआर की न्यूक्लियर सबमरीन और मिसाइलों की तैनाती ने अमेरिका के टास्क फोर्स 74 को बंगाल की खाड़ी में घुसने से रोका और ब्रिटिश नौसेना को भी भारतीय जलक्षेत्र से दूर रखा। इस समर्थन के बिना, भारत के लिए युद्ध जीतना और बांग्लादेश को स्वतंत्रता दिलाना अत्यंत कठिन हो जाता।

यह युद्ध सिर्फ सैन्य विजय नहीं थी, बल्कि एक महत्वपूर्ण मानवीय संघर्ष था। पूर्वी पाकिस्तान के लोगों पर हो रहे अत्याचार और लाखों शरणार्थियों की दुर्दशा ने भारत को इस युद्ध में उतरने पर मजबूर किया। यूएसएसआर के समर्थन ने न केवल भारत को एक निर्णायक जीत दिलाई बल्कि एक नए देश, बांग्लादेश का जन्म भी सुनिश्चित किया। इसने वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को मजबूत किया और यह साबित किया कि न्याय और मानवता की रक्षा के लिए मजबूत सहयोग और समर्थन कितनी बड़ी भूमिका निभा सकता है।

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