Iran का भारत से क्या कनेक्शन था, सिकंदर से Khomeini तक की कहानी|
युद्ध के मैदान में सिकंदर खड़ा है सामने एक रथ है रथ पर पड़ी है एक लाश, उस राजा की जो कभी धरती पर सबसे बड़े साम्राज्य का अधिनायक था।
सिकंदर अपने दुश्मन की मौत से दुखी था व उसे जिंदा पकड़ना चाहता था निराशा से भरा सिकंदर, राजा के मृत शरीर के पास जाता है। उसकी उंगली में एक अंगूठी थी सिकंदर अंगूठी उतार कर खुद पहन लेता है इसी के साथ मेसेडोनिया का सिकंदर बन जाता है।
पर्शिया का सुल्तान सिकंदर ने जब पर्शिया पर आक्रमण किया , वहां के राजा डे थर्ड डेरियस को हराने के बाद सिकंदर हिंदुस्तान आया सिकंदर से पहले हालांकि एक और डेरियस हिंदुस्तान आया था डेरियस द ग्रेट, इसी डेरियस के समय में भारत को हिंदुस्तान नाम मिला इसलिए हिंदुस्तान और फारस का रिश्ता 2500 साल पुराना है।
पारसी लोगों का भारत आना महमूद गजनी का आक्रमण, नादर शाह का हमला, तमो लंग भारत के इतिहास के महत्त्वपूर्ण चैप्टर्स का ।पर्शिया यानी आज के ईरान से चलिए चलते हैं और समझते हैं ईरान के इतिहास के बारे में जानते हैं कैसे बना ईरान।
कैसे बना ईरान:
भारत का आर्किटेक्चर बहुत कुछ ऐसा है जो उस पर ईरान का साफ प्रभाव दिखता है लेकिन इस प्रभाव की शुरुआत कैसे हुई।
ईरान के इतिहास को हम तीन हिस्सों में बांट सकते हैं 630 ईसवी से पहले 630 ईसवी के बाद और 1800 के बाद।
ईसा से 2000 साल पहले ईरान को पर्शिया कहा जाता था या फारस कहते थे।
यूरेशिया यानी यूरोप और एशिया के बीच बड़े-बड़े मैदानों में रहने वाले कबीलाई लोग उस इलाके में आए जिसे आज ईरान कहा जाता है ईरान में सबसे पहले जिन लोगों का निवास था उन्हें एलेमाइट कहते थे धीरे-धीरे राजशाही की शुरुआत हुई और ईरान में जो साम्राज्य उपजा उसे कहा गया असीरियन साम्राज्य।
असीरियन के बाद मेडियन नाम का एंपायर स्थापित हुआ इन लोगों की राजधानी थी हमदान।
राजाओं की बात करें तो ईरान के इतिहास में एक बड़े महान राजा का नाम था सायरस द ग्रेट जिसने मेडियन साम्राज्य को हराकर एक नड एंपायर की स्थापना की सारस ने ईरान का साम्राज्य पूर्वी यूरोप तक फैलाया और उन्हीं के दौर में हिंदुस्तान का उत्तरी हिस्सा मसलन अफगानिस्तान और सिंधु नदी के पश्चिम का इलाका ईरान के कब्जे में चला गया सायरस को ग्रेट सिर्फ इसीलिए नहीं कहा जाता। सायरस एक उदारवादी राजा थे।
क्षत्रप- यह शब्द सायरस के दौर से निकला है उनके राज्य में अलग-अलग इलाकों में क्षत्रप नियुक्त किए गए जो जनता की भलाई के लिए काम करते थे इसके अलावा सायरस ने जब बेबीलोन को जीता तो वहां के गुलाम यहूदियों को आजाद कर उन्हें वापस जेरूसलम जाने की इजाजत दी इसी के चलते यहूदी लोग भी सारस का बड़ा सम्मान करते हैं यहूदी इतिहास के अनुसार इस घटना के बाद यहूदी वापस जेरूसलम गए और वहां अपना मंदिर बनाया।
सायरस के बाद डेरियस जर्क्स नाम के राजा हुए जिनके समय में फारस का साम्राज्य और फला फूला टेरिस के समय तो फारस का साम्राज्य इस कदर फैल चुका था कि दुनिया की 44% जगह पर फारस रूल करता था।
इस दौरान उनके राजाओं से कुछ गलतियां भी हुई इनमें सबसे बड़ी गलती थी ग्रीस और मेसेडोनिया पर आक्रमण। इस आक्रमण का बदला लेने के लिए मेसेडोनिया के राजा सिकंदर ने फारस पर आक्रमण किया और सैन बल में कमजोर होने के बावजूद सिकंदर ने फारस के राजा डेरियस को हरा दिया।
सोर्स बताते हैं कि सिकंदर से संधि के लिए डेरियस ने कई खत लिखे । सिकंदर ने जवाब दिया, आगे से जब भी खत लिखोगे मुझे । अपने बराबर संबोधित नहीं करोगे। तुम्हारे लिए मैं किंग ऑफ एशिया हूं।
फारस के बाद सिकंदर भारत आए लेकिन विश्व विजय का अधूरा सपना लेकर उसे लौटना पड़ा सिकंदर की असमय मृत्यु के बाद फारस पर सेलक वंश ने शासन किया उनके बाद पार्थियन वंश आया।
200 साल तक फारस सामंतों के कब्जे में रहा फिर एक और ताकतवर साम्राज्य का उदय हुआ। सासानियन साम्राज्य इनके फाउंडर का नाम था ,अर्ध शर ।अर्ध शर के बाद राजा बने उनके बेटे शाहपुर को ईरान में शाहों के शाह शहंशाह के तौर पर जाना जाता है क्योंकि इनके पाले में अनोखा रिकॉर्ड है
शाहपुर वो पहले राजा थे जिन्होंने महान रोमन साम्राज्य के एक राजा वैलेरियन को युद्ध बंदी बना लिया था रोम में तब ईसाई धर्म का प्रभाव बढ़ रहा था ईसाई परंपरा के अनुसार शापुर ने वैलेरियन की बेइज्जती की उन्होंने वैलेरियन को झुकने का आदेश दिया और फिर उसकी पीठ पर पांव रखकर घोड़े पर चढ़ गए हालांकि कुछ दूसरे सोर्सेस बताते हैं कि शाहपुर ने लेरियन के साथ अच्छा सलूक किया।
सासानियन साम्राज्य ने सातवीं शताब्दी तक फारस पर शासन किया लेकिन फिर इस्लाम धर्म का उदय हुआ उनके काल में फारस के इतिहास का एक सिरा भारत से जुड़ता है दरअसल फारस का अधिकारिक धर्म था ,इस धर्म को फॉलो करने वाले लोगों को भारत में पारसी कहा जाता है सातवीं सदी में इस्लाम का उदय हुआ इस्लामी साम्राज्य के दूसरे खलीफा उमर ने फारस पर आक्रमण किया और फारस पर अरबों का कब्जा हो गया धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए जो राष्ट्रीय लोगों ने फारस से पलायन शुरू कर दिया यह पलायन अगली कई सदियों तक चला और इस दौरान 18000 शरणार्थियों का एक जत्था भारत भी पहुंचा। किस्सा ए संजा नाम की एक कविता के अनुसार पर्शिया से भागकर पारसी लोग होर्मुज चले गए होर्मुज को 30 साल तक अपना ठिकाना बना ने के बाद उन्हें यहां से भी भगा दिया जाता है यहां से इन लोगों की भारत तक यात्रा शुरू होती है
शरणार्थियों का पहला बेड़ा आठवीं शताब्दी में भारत के पश्चिमी तट तक पहुंचता है जहां ये लोग शुरुआती 19 सालों तक दीव को अपना घर बनाते हैं दीव के बाद ये बेड़ा पहुंचता है गुजरात ।
दीव से गुजरात की यात्रा में इन लोगों को भयंकर तूफान का सामना करना पड़ा तूफान से बचने के लिए वे ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और वादा करते हैं कि अगर ईश्वर ने उन्हें बचा लिया तो वे आश बहर की अग्यारी यानी एक मंदिर बनाएंगे जो राष्ट्रीय धर्म में आश भरम पवित्र आग को कहा जाता है जिसे इस धर्म में सबसे ऊंचा स्थान हासिल है किस्सा संजन के अनुसार इसके बाद तूफान रुक जाता है ये लोग गुजरात के वलसाड पहुंच जाते हैं यहां इन लोगों को पारसी कहा जाता है गुजरात के एक स्थानीय शासक जिनका नाम जदी राणा था वे इन पारसियों को अपने राज्य में शरण देने के लिए तैयार हो जाते है लेकिन उसके लिए चार शर्तें भी लगाते हैं पहली शर्त स्थानीय रीति रिवाज अपनाएंगे दूसरी वो स्थानीय भाषा बोलेंगे तीसरी शर्त, स्थानीय लोगों जैसे ही कपड़े पहनेंगे और चौथी शर्त पारसी कभी हथियार इकट्ठा नहीं करेंगे। ये शर्तें मानने के बाद पारसियों ने अपने लिए एक नया शहर बनाया जिसका नाम उन्होंने रखा संजन।
उन्होंने यहां पवित्र आग का एक मंदिर भी बनाया 13वीं सदी के अंत में जनरल अलफ खान नाम की एक मिलिट्री कमांडर ने संजन पर हमला बोल दिया।
सिकंदर से Khomeini तक की कहानी|
यह हमला सुल्तान महमूद ने किया था जो संभवतः महमूद अलाउद्दीन खिलजी का नाम है अलफ खान के खिलाफ पारसियों ने पहली बार हथियार उठाए लेकिन युद्ध के दूसरे ही दिन उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा नतीजतन संजन पर अलफ खान का कब्जा हो गया और पार्स को एक बार फिर अपने स्थान से बेदखल होना पड़ा उन्होंने पवित्र आग को अपने साथ लिया और बच्चों और औरतों को लेकर बहरोट के पहाड़ों में चले गए यहां 12 साल तक छुपकर रहने के बाद उन्होंने वंस को अपना नया ठिकाना बनाया।
आखिर में जिक्र आता है कि पवित्र अग्नि को लेकर पारसी नवसारी चले गए हालांकि उनका एक धड़ा सजान लौटा और उसे फिर बसा लिया इस्लाम के आगमन के बाद लगभग दो सदी तक फारस पर अरबों का रूल रहा इस दौरान तुर्क कबीलों का भी परश्या में आगमन हुआ अब्बासी खिलाफत के समय तुर्क लड़ाकों को गुलामों की तरह फौज में भर्ती किया जाता था इन्हें मामल कहा गया बाद में मामल ताकतवर होते चले गए और उन्होंने गुलाम वंश की स्थापना की
गुलाम वंश के ही शासक कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली पर राज किया था वहीं गजनवी वंश जिनके एक शासक महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया। तुर्कों के ताकतवर होने के बाद फारस पर अरबों का कंट्रोल कमजोर होता गया और 11वीं सदी में फारस पर सेलजुक वंश का राज हो गया यह दौर इस्लाम के गोल्डन पीरियड के तौर पर जाना जाता है जब पर्शिया में एक बार फिर फारसी भाषा का उदय हुआ फिरदौसी जैसे लेखकों ने पर्शिया का शाहनामा लिखा जिसे पर्शिया में वही कथा हासिल है जो भारत में महाभारत को। सिजकों के बाद अगला नंबर आया ख्वार अजम साम्राज्य का ख्वार जमों का शासन लंबा नहीं चला,
वजह थे मंगोल ,साल 1218 में 450 मंगोल व्यापारियों का एक कारवा खर अजम शासन वाले एक शहर तरार में दाखिल हुआ तरार का गवर्नर था इनल चुक उसे जब मंगोलों के आने का पता चला उसने इन सभी को जासूसी के शक में गिरफ्तार कर लिया हालांकि खर अजम और मंगोलों के बीच कोई लड़ाई नहीं थी लेकिन मंगोलों का रुतबा और चंगेज खान की दुनिया जीतने के इरादे से सारी दुनिया वाकिफ हो चुकी थी।
इनल चुक ने 450 मंगोलों को अपने दरबार में बुलाया आराम से जवाब देने के बजाय मंगोलों ने हेकड़ी दिखानी शुरू कर दी यह देखकर एनल चुक इतना गुस्सा हुआ कि उसने सभी मंगोल व्यापारियों को मरवा डाला जब यह खबर चंगेज खान तक पहुंची उसने अपने तीन दूत खार अजम एंपायर के सुल्तान मोहम्मद शाह के पास भिजवा कर मांग रखी इस गुस्ताखी के लिए इनल चुक को सजा दी जाए सुल्तान मोहम्मद दो कदम आगे था उन्होंने एक दूत का सर काट डाला और दो दूतों की दाढ़ी कटवाकर उन्हें वापस चंगेज खान के पास भिजवा दिया सुल्तान को ये हरकत बहुत भारी पड़ी ।साल 1219, अप्रैल का महीना मंगोल सेनाएं तरार के किले के बाहर खड़ी थी इनल चुक अपने 200 हज आदमियों को लेकर किले के अंदर छिप गया था कुल दो महीने तक युद्ध चला और अंत में नल चक को पकड़ लिया गया उसे समरकंद ले जाकर चंगेज खान के आगे पेश किया गया।
साल 1219 में तेम मुजन उर्फ चंगेज खान के दरबार में दिखाई दिया। लेखक जेरी माया कर्टन की किताब द मंगोल्स के अनुसार , चंगेज खान ने नल चुक के कानों और आंख में पिघली हुई चांदी भर दी थी चंगेज खान यहीं नहीं रुका बुखारा जो आज के उज्बेकिस्तान में है वहां मस्जिद पर चढ़कर उसने ऐलान किया मैं जन्नत से भेजा गया दूत हूं जो आज तुम सबका फैसला करेगा इसी ऐलान के साथ शहर में मारकाट शुरू हो गई मंगोल से सैनिकों ने पूरा शहर जला दिया यहां से चंगेज खान समरकंद होते हुए पर्शिया जा पहुंचा यहां उसने लोगों को गुलाम बनाकर उन्होंने अपने बीवी बच्चों में बांट दिया शहर का वह हाल हुआ कि उसे दोबारा बसाने में कई दशक लग गए। खर जम एंपायर के जर्रे जर्रे को चंगेज खान की फौज ने नेस्तनाबूद कर डाला दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य में से एक को मंगोल फौज ने यूं खत्म कर दिया जैसे बच्चों का खेल हो |
मंगोल के बाद पर्शिया पर कब्जा हुआ तिमुर वंश का, जिसके शासक तैमूर लंग थे ।
साल 1398 में तैमूर ने दिल्ली पर आक्रमण किया था तैमूर, दिल्ली में केवल 15 दिन रहा और इस दौरान उसके वजीर और सैनिकों ने दिल्ली को बड़ी बेरहमी से लूटा, फसलों को तबाह किया ऐसा हाल किया कि दिल्ली 100 साल बाद उभर पाई तिमुर वंश के बाद एक बड़ा वंश हुआ सद वंश। सद वंश के दौर में ईरान में बड़ा बदलाव हुआ सद वंश से पहले ईरान पर सुन्नी मुस्लिम समुदाय का प्रभाव था सद वंश के पहले शासक इस्माइल ने सुन्नी सेक्ट को छोड़कर शिया ब्रांच को अपना लिया इसी कारण आज भी ईरान में शिया बहुमत में है साल 1722 में सद वंश का अंत हुआ।
इसके बाद आए अफशार नादिर शाह के दौर में पर्शिया एक बार फिर अपने उरूज तक पहुंचा और इसी दौरान ईरान की तरफ से भारत पर एक और आक्रमण हुआ साल 1738 की बात है मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला एक रोज अपनी आरामगाह में थे शराब और नाच का दौर चल रहा था अचानक एक लड़का दौड़ता हुआ आया और बादशाह को एक चिट्ठी पकड़ाई ।जरूरी संदेश लिए हुई इस चिट्ठी को बादशाह ने पकड़ा और शराब के प्याले में डुबोते हुए अर्ज किया “आईने दफ्त बे माना गर के मैं ना बुला” यानी बिना मतलब की चिट्ठी को तो नीट दारू में डुबो देना ही बेहतर है यह देखकर हरकारे के पसीने छूटने लगे उसने दरख्वास्त की हुजूर नादर शाह पहुंचने वाला है रंगीला के कान पर जूं तक ना रेंगी बोतल से प्याले में शराब उड़ेल हुए बोले अनूज दिल्ली दूरस्त यानी दिल्ली बहुत दूर है लेकिन ना दिल्ली दूर थी ना नादर शाह की फौज नादर शाह ने करोड़ों के हीरे जबरात सोना चांदी इतना सब कुछ लूट लिया कि उसके मुंशी पूरी तरह हिसाब भी नहीं कर पाए सब कुछ ले चुकने के बाद भी नादर शाह का मन नहीं भरा ।
आखिर में उसने मुगल दरबार की शान तख्त ता उसको उठाया और वापस लौट गया उसमें जड़े कोहिनूर और तमुरिया माणिक भी उसके साथ चले गए और साथ ही चला गया मुगल सल्तनत का सारा वैभव और धनधान्य हैं।
मॉडर्न ईरान में 1800 के बाद पर्शिया पर पश्चिम का प्रभाव बढ़ता गया पर्शिया कमजोर हो गया नौवीं सदी में ब्रिटेन और रशिया के बीच की लड़ाई में पिस्ता रहा फॉरेन इंटरवेंशन से तंग आकर संवैधानिक क्रांति की शुरुआत हुई नतीजा हुआ कि 1905 में पर्शिया की पहली संसद बनी ।
रूस और ब्रिटेन हालांकि अभी भी पर्शिया पर प्रभाव के लिए लड़ रहे थे। 1907 में एंग्लो रशियन सम्मेलन हुआ और पर्शिया, रूस और ब्रिटेन के प्रभाव वाले इलाकों में बट गया फर्स्ट वर्ल्ड वॉर के बाद ब्रिटेन पर्शिया को अपना प्रोटेक्टरेट बनाना चाहता था लेकिन इसमें वह असफल रहा। साल 1925 में पर्शिया में एक और वंश का राज शुरू हुआ पहलवी वंश के राजा का नाम था रेजा शाह पहलवी। रेजा शाह ने 16 साल पर्शिया पर राज किया लेकिन जब तक इनका राज खत्म हुआ पर्शिया बदल चुका था साल 1935 में शाह ने पर्शिया का नाम बदलकर ईरान कर दिया दरअसल पर्शिया के लोग पहले इस इलाके को ईरान ही कहते थे जबकि पर्शिया नाम बाहर के लोगों ने दिया था ।
रेजा शाह पहलवी को गद्दी क्यों छोड़नी पड़ी
दरअसल ईरान की एक रिफाइनरी पर ब्रिटेन का कंट्रोल था सेकंड वर्ल्ड वॉर शुरू हुआ तो ब्रिटेन को डर लगा, कहीं जर्मनी इस रिफाइनरी पर कब्जा ना कर ले। ब्रिटेन ने रेजा शाह से कहा कि वह जर्मन वासियों को ईरान से बाहन निकाल दे ।रेजा शाह तैयार नहीं हुए लिहाजा 1941 में ब्रिटेन और रूस ने मिलकर ईरान पर हमला कर दिया रेजा शाह पहलवी को सत्ता छोड़नी पड़ी उनके बदले सत्ता पर बिठाया गया उनके बेटे मोहम्मद रिजा शाह पहलवी को वो ईरान को आधुनिक बनाना चाहते थे उनकी छवि ईरान में एक लिबरल नेता की थी वह ब्रिटेन और अमेरिका के खास दोस्त थे और इस दोस्ती की वजह से वह तेल को सस्ते दाम में इन्हें बेचते थे कुछ साल तो शाह ने गद्दी बचा कर रखी लेकिन 1950 का दशक उनके लिए चुनौतियों से भरा रहा।
इस दशक में मोहम्मद मसाद के साथ सत्ता संघर्ष शुरू हुआ मसादी रानी राष्ट्रवादी नेता थे 1951 में मसाद रानी ऑयल इंडस्ट्री पर ऐसा बिल लेकर आए जो अंग्रेजी हितों को नुकसान पहुंचा रहा था इससे जनता में उनका समर्थन बड़ा | मुसादिक की ताकत भी बढ़ी 1951 में वह ईरान के पीएम बन गए शाह को देश छोड़कर भागना पड़ा लेकिन यह नाटक ज्यादा नहीं चल पाया 1953 में अमेरिका और ब्रिटेन ने मिलकर मसादी का तख्ता पलट कर दिया तख्ता पलट में सीआईए का अहम रोल था उन्होंने मसादी के बदले जनरल फजलुल्लाह जहीदी को प्रधानमंत्री बनाया और रिजा शाह पहलवी की ईरान में एक बार फिर से वापसी हो गई शाह की वापसी के साथ फिर ईरानी तेल का दोहन शुरू हुआ इससे ईरान आर्थिक मोर्चे पर कमजोर पड़ा। जनता में असंतोष बढ़ने लगा |
1963 में ईरान सफेद क्रांति की शुरुआत हुई इसमें ईरान के मॉडर्नाइजेशन की बात कही गई शाह धर्म और शासन को अलग रखने की बात करते वो हिजाब विरोधी भी थे इसलिए धार्मिक नेताओं के निशाने पर रहते इन्हीं धार्मिक नेताओं में से एक थे अयातुल्ला रूहुल्लाह खुमैनी इन्होंने शाह की नीतियों के खिलाफ झंडा बुलंद किया हुआ था ।
धीरे-धीरे रूहुल्लाह खुमैनी को जनता की सहानुभूति मिली उनकी लोकप्रियता बढ़ती चली गई शाह को अपनी कुर्सी पर खतरा महसूस हुआ सो उन्होंने खुमैनी को देश निकाला दे दिया पहले इराक और फिर फ्रांस में उन्होंने समय बताया इस दौरान उनके लेख और भाषण ईरान पहुंचते रहे जिसके चलते शाह के खिलाफ देश में माहौल बनता गया इस आग में तेल का काम किया शाह की एक पार्टी।
साल 1971 की बात है पर्शिया साम्राज्य को 2500 साल पूरे हो गए थे शाह ने तय किया ऐसा भव्य जलसा कराएंगे कि पूरी दुनिया देखती रह जाएगी मंत्रियों ने सुझाया कि राजधानी तेहरान में जलसा रखना ठीक होगा लेकिन शाह ने कहा नहीं जलसा दूर रेगिस्तान में रखा जाएगा जहां पर्शिया के पहले सम्राट सायरस का मकबरा था, शाह का हुक्म था हुक्म की तामील हुई परसे पुलिस नाम की जगह पर 30 किमी के इलाके को खाली करवाया गया इंसानों से नहीं सांप बिछु से फिर पेड़ लगाए गए एक रनवे बनाया गया और राजधानी से पस पोलिस तक एक 600 किमी की रोड बनाई गई अब बारी थी शामियाने लगाने की 50 के आसपास शामियाने लगाए गए । शामियाने को महज टेंट मत समझिए इन शामिया को सजाने के लिए इतना रेशम लगा था कि जमीन पर फैला द तो 37 किमी तक पहुंच जाए हर शामियाने में दो बेडरूम दो बाथरूम और एक सालन बना हुआ था शामिया दोनों के बीच लगा हुआ था पानी का एक फव्वारा आसपास 10000 पेड़ जिनमें चह जाने के लिए 50000 गोरैया यूरोप से लाई गई सिक्योरिटी का टाइट बंदोबस्त किया गया यह तो था बाहरी बंदोबस्त ।
शहानी पेरिस के सबसे महंगे रेस्टोरेंट के सबसे अच्छे शेफ को खाना पकाने के लिए बुलाया 200 वेटर्स बुलाए गए स्विटजरलैंड से ,ईरान की फौज के जरिए एयरलिफ्ट कर पेरिस से बर्तन मंगाए गए जिनका वजन 150 टन था टाइम मैगजीन ने लिखा यह दुनिया की सबसे आलिशान पार्टी है |
दुनिया के तमाम अखबार और पत्रिकाओं में पार्टी के चर्चे हुए इसे दुनिया की सबसे महंगी पार्टी का तमगा मिला गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड बुक में नाम दर्ज हुआ। ईरान की पुलिस का मालिक खुद पार्टी में मौजूद था इसलिए पार्टी रोकता कौन पार्टी पूरे तीन दिनों तक चली दुनिया की सबसे बेहतरीन पार्टी देने के बाद शाह पहलवी खुश थे पैसा जरूर खर्च हुआ था लेकिन शाह को उस बात की कोई चिंता नहीं थी खासकर तब जब शशे बाजी से उन्हें ईरान के तेल के नए ग्राहक मिल गए थे जैसा पहले बताया टाइम मैगजीन ने इस पार्टी पर हुए कुल खर्चे की रकम 100 मिलियन डालर बताई लेकिन आगे जाकर शाह को एहसास हुआ यह पार्टी उन्हें इससे कहीं ज्यादा महंगी पड़ गई है।
पहलवी की बेगम फरहा डीबामूवी उड़ा रहे हैं अयातुल्ला खुमैनी जो शाह के सबसे बड़े आलोचक थे और उस समय देश से बाहर रह रहे थे उन्होंने भी इस पार्टी को लेकर शाह पर जमकर निशाना साधा इस जलसे की खबर जैसे-जैसे फैली जनता में शाह के खिलाफ गुस्सा बढ़ता गया शाह लिबरल होने का दावा करते थे इस पार्टी ने उनकी एक असंवेदनशील शासक की छवि को और पुख्ता कर दिया वेस्ट की ओर शाह के झुकाव के कारण भी लोगों में भारी नाराजगी थी लोग प्रदर्शन के लिए जुटने लगे शाह की पुलिस ने लोगों को जेल में डाला लेकिन विद्रोह रुका नहीं औरतें बुरका पहनकर सड़क पर निकलने लगी बुर्के पर कानूनी पाबंदी नहीं थी लेकिन अघोषित रूप से बुरका पहनने वाली महिलाओं को भेदभाव झेलना पड़ता था इसलिए बुरका ईरान की क्रांति का एक बड़ा सिंबल बना।
फरवरी 1979 में खुमैनी 14 साल बाद देश वापस लौटे देश लौटते उन्होंने जनमत संग्रह करवाया और इस्लामी गणतंत्र की स्थापना की उन्होंने खुद को सुप्रीम लीडर घोषित किया और बन गए अयातुल्लाह रूहुल्लाह खुमैनी।
इस्लामिक क्रांति से बादशाह और उनकी पत्नी ईरान छोड़कर चले गए ।
1980 में अब्दुल हसन बानी इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ इरान के पहले राष्ट्रपति चुने गए। खुमैनी इस्लामिक क्रांति लेकर आए तो पड़ोसी मुल्क के तानाशाह सद्दाम हुसैन को सत्ता से बेदखल होने का डर जताने लगा इसी डर के चलते उन्होंने ईरान पर हमला बोल दिया। इराक ईरान युद्ध अगस्त 1988 तक चला अंत तक लड़ाई का कोई नतीजा नहीं निकल सका आखिरकार इराक को पीछे हटना पड़ा ।
अमेरिकी मदद के बावजूद इराक मनमाफिक नतीजा हासिल नहीं कर पाया इसलिए उसको ईरान के लिए मनोवैज्ञानिक और रणनीतिक जीत माना गया 1 साल बाद अयातुल्लाह रोहला खुमैनी का निधन हो गया और अली खामनगा को दूसरा सुप्रीम लीडर बनाया गया और अब भी अयातुल्ला अली खाम का शासन ईरान में जारी है।