History of Suez Canal | Suez Crisis 1956 |
समुद्र से समुद्र को जोड़ने वाला एक पतला सा जलमार्ग जिसने 19वीं सदी में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के दिशा और दशा दोनों बदली, वो जल पट्टी जिसने रेगिस्तान के बालू में सनी दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यता वाले देश मिश्र को भू राजनीति में सबसे आगे ला दिया था और वो पतला रास्ता जो अब मिश्र की सरकार के लिए पैसे के सबसे बड़े स्रोतों में से एक है |
पश्चिम को पूर्व से जोड़ने वाली, दुनिया के सबसे व्यस्त रास्तों में स्वेज नहर, एशिया और पूर्वी अफ्रीका के देश को यूरोप के साथ व्यापार करने के लिए समय और पैसे की बचत करती है। स्वेज नहर ना होती तो जो देश भूमध्य सागर से ज्यादा दूर नहीं है वो भी आज काफी दूर होते हैं इन देश के जहाज को यूरोप जाने के लिए हिंद महासागर के दक्षिणी भाग और पूरे अटलांटिक महासागर का चक्कर लगाकर जाना पड़ता।
स्वेज नहर ना केवल मैरिटाइम में लगे वाले समय बल्कि डीजल की भी बचत करती है इसका मतलब समुद्र के परतंत्र और जलवायु को बचाने में भी इसकी सीधी भूमिका है जिसकी कुल लंबाई वर्तमान में 193.3 किलोमीटर चौड़ाई 205 मी और गहराई 24 मी है। लंबाई, चौड़ाई, और गहराई तीनों में वक्त – वक्त पर बदलाव हुए ।पर 2015 में इसकी लंबाई बढ़ाकर 199.3 किमी कर दी गई ।
स्वेज नहर का इतिहास :
1869 में यह नहर बनकर तैयार हुई जिसका कम 10 साल पहले यानी 1859 में शुरू हुआ था। नहर का इतिहास इससे भी कहीं ज्यादा पुराना है अभी तक जितने भी इतिहास से जुड़े जानकार ने इस पर शोध किया है वे मानते हैं की इस नहर का विचार सबसे पहले सेनंसर तृतीय ने सामने रखा था सेनुसार तृतीय ने इस पर मंथन किया था की पूर्व को पश्चिम से जोड़ने के लिए भूमध्य सागर और लाल सागर के बीच एक लिंक की जरूरत है यह बात अलग है की अभी दिमाग की उपाद से बिल्कुल अलग है ।
साम्राज्य के मिडिल किंगडम की 12वें डायनेस्टी का एक राजा था, उसने 1878 ई से 1839 ई के बीच 12वें डायनेस्टी में शासन किया था| साम्राज्य में अर्थव्यवस्था को ढंग से चलाने और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए हमेशा याद किया जाता है उसने नील नदी और उसकी शाखाओ के सहारे दोनों समुद्रों को जोड़ने का विचार सामने रखा था।
मिश्र में एक जगह है, जिद्रत अल कुरतियां, इसके आसपास से नील नदी से एक ब्रांच निकलती है, जो उत्तर पूर्व की तरफ बहती है जबकि मुख्य नील नदी, उत्तर पश्चिम की तरफ बहती है ये ब्रांच जगजी और उसके आगे रेड लेक तक जाति है पुराने वक्त में भी भूमध्य सागर से आने वाले जहाज नील के इस ब्रांच के सहारे जगह तक जाते थे।
सैंण्हेयूएसएटी तृतीय ने पूरे रास्ते को छोटा करके विकसित करने का विचार किया था। नील नदी को ग्रेट ब्रिटेन लेक से एक संपर्क मिल गया था इसका मतलब यह हुआ कि नील नदी लाल सागर से पुरी तरह नहीं जुड़ पाई ।
डेरियस प्रथम ने भी नील नदी को रेड लेक से जोड़ने का कम किया लेकिन लाल सागर को नील से जोड़ने में यह भी नाकाम रहा हालांकि इतना जरूर हुआ की कुछ छोटी-छोटी नहर बना दी गई थी जो लाल सागर तक जाति थी लेकिन इनमें बड़ी मुश्किल ये थी की जहाज को केवल बाढ़ के मौसम में ही इन छोटी नहरों में चलाया जा सकता था | एक तरह से कहे तो डेरियस प्रथम भी इस कम को अंजाम देने में नाकाम ही रहा, लेकिन इन नहरों से जुड़े जो मुश्किलात थे उन्हें 255 ई में टोटाल्मी द्वितीय ने दूर किया इसने इन छोटी नहरों को हटाकर एक बड़ी नहर खुदवा दी और बटर लेक को लाल सागर से जोड़ ही दिया 255 ई से लेकर 19वीं सदी के मध्य के बीच कई स्थानीय, लाल सागर को भूमध्य सागर से जोड़ने के लिए काम किया। स्विस नहर का इतिहास करीब 4000 साल पुराना है।
जब मिश्र पर अलग-अलग देश और साम्राज्यों ने राज किया:
मिश्र पर 1798 में फ्रांस के शासक नेपोलियन बोनापार्ट ने कब्जा कर लिया, फ्रांस यहां ज्यादा दिन टिक नहीं सका और महज 3 साल बाद ही ब्रिटेन और ऑटोमन ने उसे पटकनी दे दी। ब्रिटेन ने 1882 में मिश्र पर सही से अपना कब्जा हासिल किया था । उस समय फ्रांस और ब्रिटेन दुनिया भर में अलग-अलग जगहों पर संसाधनों पर कब्जे को लेकर लड़ रहे थे। स्विस नहर का निर्माण के पीछे का कारण,यूरोपीय देश एशिया और अफ्रीका के बीच व्यापार को रफ्तार देना चाहते थे इससे अफ्रीका और मिडिल ईस्ट से निकालने वाले प्राकृतिक तेल को यूरोप तक किस तरह छोटे और सस्ते मार्ग से पहुंचा जाए ।
यहां से कहानी शुरू होती है वर्तमान स्वेज नहर की इसके लिए 1850 के दशक में पहले कंवेशन हुआ यह कंवेशन मिश्र में यूरोपीय के पेशेवर और आर्थिक विस्तार के लिए एक तरह के बिजनेस प्रैक्टिस था मिश्र में स्वेज नहर का बनाया जाना है |किस तरह यूरोप के बाहर यूरोप के देश के विस्तार में मदद करना है।
कंसेशन एक तरह के संस्था थी जिसका कॉन्सेप्ट यूरोप के मध्य युग के इतिहास से निकलता है जो कहता है की यूरोपीय इस जगत में सर्वपरी हैं और उनके कुछ विशेष अधिकार हैं
कंसेशन को 30 नवंबर 1854 को जारी किया गया था इसके पहले आर्टिकल मे जारी ,एक फ्रेंच डिप्लोमेंटरेटिनेंट डिप्स को इस बात की मंजूरी दी गई की वो एक कंपनी बनाए। एक कंपनी जो लाल सागर और भूमध्य सागर के बीच नहर का निर्माण कार्य की देखरेख भी करेगी इस कंपनी में आधी हिस्सेदारी फ्रांस के निवेशकों की थी, जबकि वक्त के साथ-साथ सैयद पाशा का भी इसमें बड़ा खाता था कंसेशन के अलग-अलग आर्टिकल के जारिए यूरोपियंस ने मिश्र को आधुनिक और आधारभूत संरचना से जुड़े प्रोजेक्ट्स के लिए राजी कर लिया था साथ ही बड़ी चालाकी से मिश्र सरकार को अपने जाल में फंसा लिया था।
कंस्ट्रक्शन में तय हुआ था की इसकी पुरी अवधि 99 वर्षों की होगी और इसके बाद मिस्र की सरकार का ही इस नहर पर हक होगा लेकिन इस दौरान मिस्र सरकार को कंपनी के शुद्ध लाभ का सिर्फ 15% ही मिलेगा।
5 दिसंबर 1858 के दिन यूनिवर्सल कंपनी ऑफ द मेरी टाइम कैनाल ऑफ स्विस की स्थापना की जाति है और उसके अगले साल यानी 1859 में 25 अप्रैल के दिन नहर खोदने का काम शुरू होता है इधर ब्रिटेन और ओटोमन दोनों की तरफ से नहर की शुरुआत किये जाने पर आपत्ती जताई जा रही थी उस वक्त भले राज का मिश्र पर हो लेकिन अपने दफ्तरों के जारिए ब्रिटेन की सरकार भी इधर चल ही रही थी। आपत्ती जताने की वजह यह थी की ब्रिटेन को लगने लगा था की फ्रांस इसमें बाजी मार चुका है और उसे आगे फ्रांस से बड़ी चुनौती मिलने वाली है।
1862 तक आते-आते समंदर का जल इस्माइल या के पास स्विस नहर के बिल्कुल बीच स्थित टेमसहा झील में मिल चुका था 1869 में उत्तर में कोर्ट सईद और दक्षिण में पोर्ट्स स्विस को जोड़ दिया गया था |इस तरह 18 अगस्त 1869 को यानी पूरे 10 सालों के मेहनत के बाद स्वेज कंपनी ने दुनिया को वो तोहफा दिया जिसका विचार तृतीय ने किया था तोहफा इतना बड़ा था की इसके उद्घाटन के लिए एक बड़ा जलसा किया गया 17 नवंबर के दिन एक बड़ा समारोह होता है जिसमें यूरोप और अलग-अलग देश के लगभग 6000 हुक्मरान शामिल हुए ।
व्यापार जगत के लिए उस वक्त के लिए यह इतनी बड़ी उपलब्धि थी की एक भूगोलवेत्ता ने इसे हमेशा के लिए पल्स ऑफ इजिप्ट घोषित कर दिया जो बाद में सही भी साबित हुआ ।
स्वेज कंपनी जब बनाई गई थी तब उसका कुछ हिस्सा सैयद पाशा यानी उस वक्त के ओटोमन शासन के पास भी था 1875 आते-आते तक मिश्र अपने अंदरुनी वजहों से आर्थिक रूप से इतना कमजोर हो चुका था की उसे अपना हिस्सा बेचना पड़ा, हिस्सा बेचा भी तो किसको ब्रिटेन को अब सोचिए जो ब्रिटेन इतने अच्छे से घात लगाएं बैठा था उसके तो मन की हो गई, वहीं दूसरी तरफ कंपनी के वार्षिक शुद्ध लाभ का जो 15% हिस्सा मिश्र सरकार को दिया जा रहा था उसे भी मिश्र सरकार ने फ्रांस के एक बड़े बैंक क्रेडिट फोन शेर डिफरेंस को बेच दिया जिसकी कीमत थी 22 मिलियन।
मिस्र सरकार को शायद पता नहीं था की वह चंद्र पैसों के लिए कितने बड़े जाल में फैंस चुकी है यह सब होने के बाद अब मिस्र सरकार को उनकी सरजमीं पर बनी संपत्ति पर हक नहीं रह गया। 56% हिस्सा था फ्रांस के पास तो ब्रिटेन के हिस्सेदारी थी 44% अब ऐसा कैसे हो सकता है की यूरोप के इन दो देश के बीच जो लड़ाई दुनिया के हर कोनो में चल रही हो वो लड़ाई मिश्र की जमीन पर ना हो ।लड़ाई केवल नहर पर हक की नहीं थी, असल वजह थी अफ्रीका और पश्चिम एशिया के तेल को यूरोप पहुंचाना ब्रिटेन तो मानो नहर पर पूरा कब्जा करने की पुरी तैयारी में था वक्त ने उसका जैसे साथ भी दिया हो।
1879 से 1882 के दरमियां मिश्र में ग्रह युद्ध जैसे हालात थे क्योंकि मिश्र पर उस वक्त शासन कर रहा था ओटोमन राजतंत्र वहीं वित्तीय नियंत्रण पुरी तरह फ्रांस और ब्रिटेन के हाथों में था।हालात इतने खराब हो चले थे कि यहां के एक फौजी करनाल अहमद उर्वी ने ही विद्रोह छेड़ दिया।
इसके बाद मिस्र ब्रिटेन का एक उपनिवेश बन चुका था इसके बाद ब्रिटेन ने एक्सप्रेस करनाल कंपनी जो की एक फ्रांस की कंपनी थी उसकी सभी सुविधाओं को रोक दिया और एक समय के लिए इस नहर से किसी भी जहाज के निकलने पर पाबंदी लगा दी ।
नहर पर नियंत्रण को लेकर लड़ाई यूरोप पहुंच चुकि थी यूरोप के देश को यह बात गले से नहीं उतर रही थी की आखिर ब्रिटेन का ही इस पर हक कैसे हो सकता है ब्रिटेन पर फिर दबाव डाला गया 1883 में आखिर ब्रिटेन ने कुछ नरम रुख रख दिया ब्रिटेन ने एक स्टेटमेंट जारी कर कहा की वह हालातो को देखते हुए मिश्र से सेना को हटाने को तैयार है ब्रिटेन इस बात के लिए राजी हो गया की अब यूरोप की बड़ी शक्तियों के बीच इस नहर को लेकर एक समझौता किया जाना चाहिए।
29 अक्टूबर 1888 के दिन तुर्की के कांस्टेंटिनॉपल जिसका नाम अब इस्तांबुल है वहां एक कन्वेंशन हुआ इसे कांस्टेंट नोबल कन्वेंशन कहते हैं बैठक में फ्रांस, ऑस्ट्रिया, हंगरी, स्पेन ,ब्रिटेन, इटली ,नीदरलैंड्स, रूस और तुर्की जैसी यूरोप की बड़ी शक्तियां शामिल थी अजीब बात ये है की इजिप्ट की तरफ से इसमें किसी को नहीं बुलाया गया है हैवीवेट ऑफ ए गिफ्ट एक ओटोमन साम्राज्य का ऑटोनॉमस ट्रिब्यूटरी स्टेट था जहां स्वेज नहर बनाई गई थी।
कन्वेंशन में यह देश इस बात पर राजी हुए की चाहे व्यापार का मसला हो या फिर युद्ध का स्वेज मैरिटाइम केनाल सभी देश के लिए हमेशा खुली रहेगी, साथ ही यह भी तय किया गया कि इस कन्वेंशन का पालन हो रहा है या फिर नहीं इसकी देखरेख की जिम्मेदारी मिश्र के एजेंट की होगी।
जब मिश्र को इस बात का एहसास हुआ कि स्वेज नहर उनकी है और इससे होने वाली कमाई भी उन्ही की है हालांकि ये सब हासिल करना उसके लिए आसन नहीं था मिश्र भी ब्रिटेन के कब्जे में था लेकिन 1922 में ब्रिटेन ने मिश्र को आजाद घोषित कर दिया था हालांकि उसने मिश्र के अधिकांश हिस्से और नहर से खुद को नहीं हटाया था नहर को अपने अधिकार में लेने के लिए मिश्र को आजादी के बाद भी लंबा इंतजार करना पड़ा इस देश को जरूरत थी नासिर जैसे राष्ट्रवादी नेता की, जमाल अब दे बिल नासिर मिस्र की सेना में करनल की रैंक के अधिकारी थे।
1954 में सैया शासन के तहत ही उन्होंने सत्ता हासिल की थी इसके बाद वो 1956 में चुनाव जीतकर मिस्र के राष्ट्रपति भी बनते हैं जून में राष्ट्रपति पद की कमान संभालने के बाद नासिर के लोकप्रियता और बाढ़ चुकी थी सेना पहले से ही उनके हाथ में थी बस लोगों को अपने साथ लाने की जरूरत थी ।
1945 में दूसरा विश्व युद्ध खत्म होने के बाद मिस्र ने ब्रिटेन पर दबाव बनाना शुरू कर दिया की वह यहां से अपनी सेना हटा ले, राष्ट्रीयकरण की पृष्ठभूमि तैयार हो चुकी थी बस घोषणा होना बाकी था। डी यूनिवर्सल कंपनी ऑफ डी स्पेस मैरिटाइम कैनाल इस हरबी नेशनलाइज्ड जो इट्स असेट्स राइट्स और ऑब्लिगेशन आर ट्रांसफर का प्रभाव ज्यादा था इसलिए नासिर को इन्हें काउंटर करने के लिए सोवियत संघ की जरूरत थी।
नासिर के रिश्ते रूस के साथ मजबूत हो रहे थे इधर अमेरिका और ब्रिटेन ने पहले ही आसवन बांध के निर्माण के लिए फंडिंग करने को माना कर दिया था ऐसे में नासिर के पास एक ही रास्ता था की वो रूस से मदद ले बस मौका देखते ही नासिर ने स्वेज के राष्ट्रीयकरण की घोषणा कर दी और इसमें वजह बताई की हमें अस्वान बांध के लिए पैसों की जरूरत है और इसकी पूर्ति हमें स्वेज से मिलने वाले टोल से ही होगी। इसके लिए एक अथॉरिटी बनाई गई।
इजरायल इसमें क्यों शामिल हुआ?
नासिर को डर था की कही स्वेज नहर युद्ध का अखाड़ा ना बन जाए इसलिए मिश्र ने पहले ही ब्रिटेन और फ्रांस को मनाने की कोशिश की। लेकिन ब्रिटेन और फ्रांस पहले से मन बना चुके थे स्थानीय उभरती ताकत इजरायल भी इसमें कूद पड़ा था । इजरायल ने ही सबसे पहले मिश्र पर हमला किया था लेकिन यह समझना जरूरी है की इजरायल इसमें क्यों शामिल हुआ?
इजरायल को लाल सागर तक पहुंचने के लिए दक्षिण में मौजूद स्ट्रेट ऑफ ईरान से निकलना पड़ता है लेकिन यह द्वीप से सटा हुआ था और इस पर कब्जा कर रखा था मिस्र ने इजरायल और अरब देश के बीच पहले से तनाव था और इजरायल इसका बदला लेने की फिराक में था।
स्वेज संकट :Suez Crisis 1956
मिश्र पर सबसे पहले 29 अक्टूबर 1956 के दिन इजरायल हमला कर दिया । ब्रिटिश, फ्रेंच और इजरायल फौजी के द्वारा युद्ध शुरू कर दिया गया। इधर सोवियत संघ रूस भी इस फिराक में था की वह मिडिल ईस्ट में अपना दबदबा कायम कर सके| स्वेज संकट उसके लिए भी एक मौका था उसने मिश्र की सेना को हथियार और गोला बारूद पहुचाने में डरा नहीं ,कूटनीतिक मोर्चा संभाल सोवियत नेता खुश हुए उन्होंने यूएनएससी में स्वेज संकट को खत्म करने का दबाव डाला । सोवियत ने कड़े लफ्जों में धमकी दी अगर ब्रिटिश, फ्रेंच, इजरायली फोर्स वक्त रहते पीछे नहीं हट्टी है तो सोवियत रूस ,पश्चिम यूरोप पर परमाणु हमला करने में भी बिल्कुल देर नहीं करेगा।
इसके जवाब में अमेरिकी राष्ट्रपति ने सोवियत पर प्रतिबंध लगा दिए 4 नवंबर को उन ने भी फरमान जारी कर दिया की ब्रिटेन के हमले में अगर मिश्र के लोगों को नफा नुकसान होता है तो उस पर प्रतिबंध लगा दिए जाएंगे इसे देखते हुए ही ब्रिटेन के फाइनेंशियल रिजर्व में कमी आने लगी थी।
ब्रिटेन आर्थिक मोर्चे पर कमजोर हो चुका था साथ ही युद्ध के मोर्चे पर दुनिया भर में उसकी साख गिर चुकी थी। चारों तरफ से घिरे ब्रिटेन और फ्रांस ने आखिर दिसंबर 1956 में अपनी फौज को वापस बुला लिया लेकिन स्वेज नहर का वो हिस्सा जो सिने प्रायद्वीप की तरफ था उस पर अब भी इजरायली सेना का कब्जा था जो की मार्च 1957 में खत्म हुआ युद्ध के बाद ये माना जाने लगा की ब्रिटेन और फ्रांस अब दुनिया की बड़ी ताकते नहीं रह गई । इधर रूस के रिश्ते मिश्र और कुछ अरब देश के साथ और मजबूत होते चले गए । ये पहला मौका था की यूनाइटेड नेशंस ने अपने पीसकीपिंग फोर्स का इस्तेमाल किया हो।
युद्ध का नतीजा निकला की आखिरकार बड़ी जद्दू जिहाद के बाद मिश्र को अपनी जमीन पर बनी नहर का अधिकार मिल गया। 29 मार्च 1957 को इस नहर को फिर से खोल दिया गया तबसे आज तक ये नहर मिश्र के अधिकार में है इस त्रिपक्षीय हमले के बाद यहां नासिर प्रोजेक्ट शुरू किया गया जिसके तहत नहर की क्षमता बड़ा दी गई।
1996 में फिर एक बार जब इजरायल ने हमला किया तो इस नहर को ब्लॉक कर दिया गया इसे जून 1975 में फिर से खोल दिया गया ।