nvlm247 news

Modern India History (आधुनिक भारत का इतिहास )

भारत में यूरोपीय कम्पनियों का आगमन (European Companies Arrive in India)

 इंडियन फ्रीडम स्ट्रगल से एडवेंचरस  इंडिया आते हैं और अल्टीमेटली एक पॉलीटिकल पावर बनकर अपना अंपायर एस्टेब्लिश करते हैं लेकिन ब्रिटिश के अलावा और भी कुछ यूरोपियन कंपनी ट्रेड करने के लिए इंडिया आई हैं पर उनके बारे में बात करने से पहले हम यह जानेंगे की ऐसी क्या कंडीशन थी की यूरोपीय कंपनी ने इंडिया का रुख किया|

प्राचीन काल से ही इंडिया और यूरोप के अच्छे ट्रेड रिलेशंस थे| इंडिया के कॉटन, सिल्क ,टैक्सटाइल्स और स्पाइसेज की यूरोप की मार्केट में काफी हाई डिमांड रहती थी|

मध्य काल में स्ट्रीट की एजेंट पार्ट को अब मरचेंट्स और मेडिटरेनियन और यूरोपीय पार्ट को इटालियन डील करते थे क्योंकि अभी तक इंडिया वाला रूट डिस्कवर नहीं हुआ था, तो ट्रेड कांस्टेंटिनॉपल यानी आज के इस्तांबुल होकर किया जाता था लेकिन जब ओटोमन टर्क्स एशिया माइनर पर कंट्रोल एस्टेब्लिश करते हैं और 1453 में कांस्टेंटिनॉपल को कैप्चर कर लिया जाता है तब ईस्ट और वेस्ट के बीच के ओल्ड ट्रेड रूट भी इनके कंट्रोल में आ जाते हैं उसके अलावा वेनिस और जेनोवा के मर्चेंट कांस्टेंटिनॉपल के पास लोकेटेड होने का फायदा उठाकर यूरोप और एशिया के बीच ट्रेड पर अपनी मोनोपोली एस्टेब्लिश कर लेते हैं और वो किसी नए यूरोपियन नेशन स्टेट को इसमें शेयर नहीं देना चाहते थे ।नतीजतन वेस्ट, यूरोपीय स्टेटस और मरचेंट्स नए और सिर्फ ट्रेड रूट को सर्च करते हैं।

 इसमें सबसे पहले स्टेप्स लेने वाले थे पुर्तगाल और स्पेन ।यहां की गवर्नमेंट मरचेंट्स की सी वॉयस को स्पॉन्सर करती हैं साथ ही साइंटिफिक डिस्कवरी जैसे की मरीनारा कंपास और लॉन्ग डिस्टेंस शिप का इन्वेंशन भी इसमें हेल्प करता है।

 1492 में स्पेन के क्रिस्टोफर कोलंबस यात्रा पर निकलते हैं| पर वो इंडिया पहुंचने की जगह अमेरिका पहुंच जाते हैं|

पुर्तगालियो का भारत आगमन (Arrival of Portuguese in India)

  1498 में पुर्तगाल के वास्को डा गम यूरोप से इंडिया पहुंचने के लिए एक नए सी रूट, कैप ऑफ गुड होप की डिस्कवरी करते हैं ।

 1498 को वास्को डी गामा साउथ वेस्ट इंडिया के एक इंपॉर्टेंट पोर्ट कालीकट पहुंच जाते है जहां पर वहा के रूलर द्वारा उनका स्वागत किया जाता है और ट्रेड को प्रमोट करने के लिए उन्हें कुछ प्रिविलेज भी ग्रैंड करते हैं ऐसा इसलिए क्योंकि ट्रेड लोकल रोलर के लिए इनकम का एक इंपॉर्टेंट सोर्स था

इंडिया में 3 महीने रहने के बाद वास्को डा गम एक रिच कार्गो के साथ यूरोप वापस लोट जाते हैं इस कार्गो को वो यूरोप की मार्केट में बहुत हाय रेट पर सेल करते हैं कहा जाता है ,की उनकी पुरी यात्रा की कॉस्ट का 60 टाइम्स रिटर्न उन्हें मिलता है सेल से।

वास्को डा गम 1501 AD में फिर से इंडिया फैक्ट्री सेटअप करते हैं यहां से इंडिया और पुर्तगाल के बीच ट्रेड लिंक की शुरुआत होती है और कालीकट ट्रेडिंग सेंटर्स बनकर उभरते हैं पुर्तगीज की बढ़ती हुई पावर्स और उनकी अनफेयर ट्रेड डिमांड्स जैसे की अरब सी में मोनोपोली की कोशिश, उनके और लोकल रूलर जमोरेन के बीच हॉस्टल डेज बड़ा देती हैं पुर्तगीज ट्रेडर्स डिमांड रखते हैं की जमोरेन अपने एरिया में से मुस्लिम ट्रेडर्स को बाहर कर दें जमोरेन उनकी डिमांड को नहीं मानते और दोनों के बीच इसी बात को लेकर एक मिलिट्री फेस ऑफ होता है जिसमें जमीरन हर जाते हैं और पुर्तगीज के मिलिट्री सुपीरियर एस्टेब्लिश हो जाति है इसके बाद से पुर्तगीज पावर का राइस होना शुरू होता है |

 राइस ऑफ पुर्तगीज पावर इन इंडिया 

 इनकी पॉलिसी थी, इंडियन ओसियन पर अपना कंट्रोल एस्टेब्लिश करना इसलिए इनकी पॉलिसी को ब्लू वाटर पॉलिसी भी बोला जाता है ये ट्रेड लाइसेंस या पास होता था जो पुर्तगीज कंपनी से बाकी सभी इंडियन और एशिया ट्रेडर्स को इंडियन ओसियन में ट्रेड करने के लिए लेना होता था साथ ही लंबे रूट के शिप जो पुर्तगीज के कंट्रोल थे, जो भी पोर्ट्स पर रुकते हुए स्ट्रेट ऑफ मलका की तरफ जाते थे उन्हें भी ये कार्टेज लेना होता था जिनके पास ये पास नहीं होता था उनकी शिप और कार्गो को पुर्तगीज अपने कब्जे में ले लेते थे इसे इंप्लीमेंट करने के लिए पुर्तगाली अपने मिलिट्री शिप और कैनंस को ट्रेडिंग शिप के साथ रखते थे।

 1580 में अलमेडा को रिप्लेस करके अल्फाजों अल्बुकार  गवर्नर बनते हैं यह 1580 में बीजापुर के सुल्तान से गोवा को कैप्चर करते हैं इनको ही इंडिया में पुर्तगीज पावर का रियल फाउंडर बोला जाता है और कालीकट बनवेट इनके बाद गवर्नर बनते हैं जो इंडियन कैपिटल को कोचीन से गोवा शिफ्ट करते हैं ।

 1559 AD में दमन को भी पुर्तगीज का पोस्ट एरियाज पर कंट्रोल और उनकी सुपीरियर लेवल पावर उनको बहुत हेल्प करती है और 16 सेंचुरी तक आते – आते पुर्तगीज न  केवल गोवा, दमन व दिव और सेल सेट पर कैप्चर कर लेते हैं बल्कि इंडियन कास्ट के अलोंग एक बड़े एरिया पर उनका कंट्रोल होता है लेकिन फिर 16th सेंचुरी के बाद से इनकी पावर का डिक्लिन शुरू होता है।

 1631 में पहुंच चुकी इस मुगल एंपरर शाहजहां के सेना प्रमुख कासिम खान के हाथों हुगली को देते हैं फिर 1661 में पुर्तगाल के किंग, बॉम्बे को दहेज  में इंग्लैंड के चार्ल्स द्वतीय को दे देते हैं और  बाकी बचे क्षेत्र को मराठा जीत लेते हैं।

इस तरह पुर्तगीज की पावर काफी कम रह जाती है लेकिन इसके बाद भी गोवा, दीव और दमन पर 1961 तक इनका कंट्रोल बना रहता है।

  फ्रांसिस्को  1542 में इंडिया आते हैं इन्हें आज भी इंडिया की कैथोलिक क्रिश्चियन बहुत मानते हैं ।

तंबाकू, टमाटर, आलू और चिलीज का कल्टीवेशन भी पुर्तगालियो ने ही इंट्रोड्यूस किया था।

 1556 AD में गोवा में इन्होंने इंडिया का फर्स्ट प्रिंटिंग प्रेस एस्टेब्लिश किया था।

भारत में  डच का आगमन (Arrival of the Dutch in India)

नीदरलैंड  देश में रहने वाले लोगों को डच कहा जाता है। इस कंपनी को 21 सालों तक इंडिया और ईस्ट के देशो के साथ ट्रेड, इनवेजन और कॉक्वेस्ट करने का राइट भी पार्लियामेंट ने दिया था। यह इंडिया में आकर पुर्तगीज की मोनोपोली को खत्म करते हैं।

डच अपनी पहली फैक्ट्री 1605 में आंध्र प्रदेश के मसूलिपटनम में बनाते हैं उसके बाद और भी जगह अपनी फैक्टरीज को एस्टेब्लिश करते हैं।

 1610 में पुलीकट मे,1616 में सूरत मे,1653 में चिनसुरा मे, 1659 में पटना बालेश्वर, नागपट्टनम ,कराईकाल, कासिम बाजार और 1663 में कोचिंन में ।

इनका हेड क्वार्टर तमिलनाडु के पुलीकट में था । 17th सेंचुरी में इंडिया से होने वाले स्पाइस यानी मसाले के व्यापार पर डच अपनी मोनोपोली एस्टेब्लिश करने में कामयाब होते हैं इसके अलावा कॉटन, टैक्सटाइल्स, इंडिगो सिल्क और ओपियो का एक्सपोर्ट डच, इंडिया से करते थे

 इंग्लिश कंपनी के इंडिया मे आने के बाद डच का सामना अंग्रेजो से होता है जिसके बाद डच को हार का सामना करना पड़ता है। इस बैटल को बैटल ऑफ चिंचूड़ा या बैटल ऑफ हुगली भी कहा जाता है

 अंततः डच ईस्ट इंडिया कंपनी को 1798 में भारत से जाना पड़ जाता है।

अंग्रेजो का भारत आगमन (Arrival of the British in India)

ईस्ट इंडिया कंपनी, पुर्तगीज और डच ट्रेडर्स की सक्सेस से इंप्रेस होकर इंग्लैंड के मरचेंट्स ने मर्चेंट एडवेंचर्स नाम के ग्रुप से 1599 में इंग्लिश ईस्ट इंडिया कंपनी को एस्टेब्लिश किया था।

 कंपनी का पूरा नाम द गवर्नर और कंपनी ऑफ मर्चेंट ऑफ ट्रेडिंग इन तू डी ईस्ट इंडीज था 31 दिसंबर 1600 को इंग्लैंड की क्वीन एलिजाबेथ डी फर्स्ट 15 सालों के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी को पूर्वी ट्रेड का चार्ट ब्रांड करती हैं जिसका मतलब यह था की इस कंपनी को ईस्ट के साथ ट्रेड करने की मोनोपोली होगी। इंग्लैंड से और कोई भी कंपनी यहां ट्रेड नहीं कर सकती थी।

कम्पनी कैप्टन विलियम हॉकिंस को मुगल एंपरर जहांगीर के दरबार में भेजती है उनका मकसद जहांगीर से रॉयल फरमान हासिल करना था जिससे वो सूरत में अपनी ट्रेडिंग फैक्ट्री लगा सके लेकिन जहांगीर के कोर्ट से उन्हें खाली हाथ ही वापस जाना पड़ता है ।अंग्रेज समझ जाते हैं की पुर्तगीज के रहते उनका ट्रेड करना मुश्किल है इसलिए 1600 AD में सूरत में अंग्रेजो और पुर्तगालियों के बीच एक युद्ध होता है जिसमे अंग्रेज, पुर्तगालियों को हरा देते हैं। इससे जहांगीर को भी अंग्रेज की पावर का यकीन हो जाता है और फिर 1613 में जहांगीर उन्हें इंडिया के वेस्ट कास्ट पर फैक्ट्री एस्टेब्लिश करने की परमिशन भी दे देते हैं।

अंग्रेज 1613 में सूरत में अपनी पहली फैक्ट्री एस्टेब्लिश करते हैं और वो कंपनी को रॉयल चार्ट ग्रैंड करते हैं जिससे कंपनी को मुगल टेरिटरी में कही भी व्यापार करने और फैक्ट्री एस्टेब्लिश करने की आजादी मिल जाति है इसके बाद कंपनी इंडिया में अलग-अलग जगह फैक्टरीज एस्टेब्लिश करती है जैसे की मसूलिपटनम, आगरा, अहमदाबाद, उड़ीसा के बालेश्वर और हरिहरपुर आदि ।

1639 में कंपनी को मद्रास लीस्ट मे मिलता है और यहां फोर्ट सनहोज बनाया जाता है।

1668 में कंपनी को चार्ल्स सेकंड से बॉम्बे लीस्ट पर मिल जाता है जो चार्ल्स सेकंड को पुर्तगीज द्वारा दहेज में मिला था।

 1698-99 में बंगाल के सूबेदार आजम खान की परमिशन से  कंपनी को सुतानती, गोविंदपुर और कलिकता की जमींदारी मिल जाति है यहां पर ही 1700 में फोर्ट विलियम की स्थापना होती है ।

1771 में मुगल एंपरर फारुख खान फरमान जारी करके कंपनी को और भी ज्यादा राइट्स दे देते हैं जैसे की उन्हें सिर्फ ₹3000 वार्षिक कर के बदले में बंगाल में ड्यूटी फ्री व्यापार करने का अधिकार मिलता है कोलकाता के आसपास की जमीन खरीदने की परमिशन भी दी जाति है। इसके अलावा कंपनी द्वारा मुंबई में इशू किया गए सिक्को को पूरे मुगल राज्य में चलाने की अनुमति भी मिलती है इसलिए इस फरमान को कंपनी का मैग्ना भी कहते हैं |इसके बाद कंपनी की पावर बढ़ती ही जाति है।

डेनमार्क का भारत में आगमन (Arrival of the Denmark in India)

डेनमार्क की ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1616 में हुई थी इस कंपनी ने 1620 में तमिलनाडु के ट्रक व्यापार और 1676 में बंगाल के सिरमपुर में अपनी फैक्टरी स्टैब्लिश की थी सेरंपोर इनका इंर्पोटेंस सेंटर और हैडक्वाटर था लेकिन ये खुद को इंडिया में ज्यादा स्ट्रांग नहीं बना पाए और 1845 में अपनी सभी सेटलमेंट ब्रिटिश कंपनी को बेचकर यहां से चले गए|

भारत में फ्रांसीसियो का आगमन (Arrival of the French in India)

फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी के द्वारा फॉर्म किया गया सूरत में अपनी पहले फैक्ट्री एस्टेब्लिश करती है उसके बाद 1669 में गोलकुंडा के सुल्तान से परमिशन लेकर यह अपनी दूसरी फैक्ट्री नाम का एक गांव प्राप्त किया जो बाद में पांडिचेरी के नाम से फेमस हुआ।

 1692 में बंगाल के मुगल सूबेदार शाइस्ता खान की अनुमति से फ्रेंच कंपनी ने चंद्रनगर में फैक्ट्री की स्थापना की उसके बाद फ्रेंच 1724 में मालाबार में माही को कैप्चर कर लेते हैं और 1739 में तमिलनाडु में कराईकाल को।

 1724 में ही फ्रेंच गवर्नर डुप्लेक्स इंडिया आते हैं और उनके साथ ही शुरुआत होती है कहानी एंग्लो फ्रेंच वार्स की जिन्हें कर्नाटक युद्ध भी कहते हैं ।

कर्नाटक युद्ध, इंग्लिश और फ्रेंच कंपनी के बीच हुए थे।

 

 इंडिया और यूरोप के बीच होने वाले ट्रेड का फायदा उठाने के लिए अलग-अलग यूरोपियन कंपनी इंडिया आई वो मोनोपोली फोर्स का इस्तेमाल, नेवी का इस्तेमाल करने में भी पीछे नहीं रहती इन सभी कंपनी के बीच आपस में पावर के लिए स्ट्रगल चला है जिसमें फाइनली इंग्लिश कंपनी को सक्सेस मिलती है

Exit mobile version