सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगाई:13 मार्च को पता चलेगा किस पार्टी को किसने, कितना चंदा दिया
लोकसभा चुनाव के ऐलान से ठीक पहले इलेक्टोरल बॉन्ड्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड स्कीम को अवैध करार देते हुए उस पर रोक लगा दी है। साथ ही 2018 में नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लाए गए रेक्टोरियल बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया है।
पहले आप ज़रा इलेक्टोरल बॉन्ड का मतलब समझ लीजिए ताकि आपको फैसले की अहमियत और बड़ी बातें समझने में आसानी होगी। 2018 में केंद्र सरकार यानी नरेंद्र मोदी की सरकार, इलेक्टोरल बॉन्ड लेकर आई इलेक्टोरल बॉन्ड किसी गिफ्ट या वाउचर की तरह होता है। सरकार हर साल चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और ऑक्टोबर में 10- 10 दिन के लिए बॉन्ड जारी करती है। मूल्य होता है 1000, 10,000 10,00,000 या 1,00,00,000।
राजनैतिक पार्टियों को ₹2000 से अधिक चंदा देने के इच्छुक कोई भी व्यक्ति या कोई भी कॉर्पोरेट हॉउस भारतीय स्टेट बैंक यानी एस बी आई की तय शाखाओं से ये बांड खरीद सकते हैं। इलेक्टोरल बॉन्ड मिलने के 15 दिन के अंदर राजनीतिक पार्टियां इन्हें अपने खाते में जमा करवाती है।
बॉन्ड भुना रही पार्टी को ये नहीं बताना होता कि उनके पास ये बॉन्ड आया कहाँ से है? दूसरी तरफ एस बी आई को भी ये बताने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता कि उसके यहाँ किसने कितने बांड खरीदे। ये इलेक्टोरल बॉन्ड के हिसाब से जो केंद्र सरकार लेकर आई थी, उसके हिसाब से तय किए गए नियम कायदे कानून है।
सुप्रीम कोर्ट ने इसी इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगा दी है और 2024 के चुनाव से पहले ये फैसला काफी अहम हो गया। श्री जय चन्द्रचूथ के अध्यक्षता वाली बेंच ने इस पर फैसला सुनाते हुए कहा, इलेक्टोरल बॉन्ड आर टी आई राइट टु इन्फॉर्मेशन यानी सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है।
जनता के पास चुनावी पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग जानने का पूरा अधिकार है। कोर्ट ने कहा कि भारतीय स्टेट बैंक यानी एस बी आई 2019 से अब तक सारे इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी तीन हफ्ते के अंदर चुनाव आयोग को दे और चुनाव आयोग इन सारी जानकारीयों को अपने अधिकारिक वेबसाइट पर पब्लिश करें।
देखिए आज एक बहुत ही महत्वपूर्ण फैसला सुप्रीम कोर्ट ने दिया, जिसका की बहुत लंबा असर होगा। हमारी पूरी चुनावी लोकतंत्र के ऊपर उन्होंने ये इलेक्टोरल बॉन्ड की स्कीम कॉम्प्रीहेंसिव्ली स्ट्राइक डाउन कर दी है। ये कहते हुए की इसमें जो एनानिमस एलिमेंट इन्होंने लाया की भाई किसी को पता नहीं लगे की भाई ये इलेक्टोरल बॉन्ड किसने खरीदे और किसको दिए?
ये बिलकुल हमारे जनता के सूचना के अधिकार के खिलाफ़ है, जो की एक मौलिक अधिकार है जनता का। कोर्ट अपने फैसले में कहा कि बांड जारी करने वाले बैंक तुरंत बॉन्ड जारी करना बंद कर दे। CJI डी वै चंद्रचूड़ ने कहा कि नागरिक को सरकार को जिम्मेदार ठहराने का अधिकार है। सूचना के अधिकार का महत्वपूर्ण पहलू ये है कि ये केवल राज्य के मामलों तक ही सीमित नहीं है। फैसला सुनाने से पहले सी जी आई ने कहा था कि फैसला एक है लेकिन दो तर्क लिखे गए हैं।
उन्होंने कहा, हम सर्वसम्मति से फैसले पर पहुंचे हैं। दो राय एक मेरी, दूसरी न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की। दोनों एक ही निष्कर्ष पर पहुंचते हैं, लेकिन तर्क में थोड़ा अंतर है। CJI ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इलेक्टोरल पॉइंट के अलावा भी काले धन को रोकने के दूसरे तरीके हैं। राजनीतिक दलों को मिलने वाली फंडिंग के बारे में जानकारी अगर लोगों को होगी तो उससे उनको अपना मताधिकार यानी वोट करने का जो अधिकार है, उसका इस्तेमाल करने में स्पष्टता मिलेंगे।
इसलिए इलेक्टोरल बॉन्ड पर तुरंत रोक लगाई जाए। एस बी आई को तीन हफ्ते के अंदर 12 अप्रैल 2019 से लेकर अब तक की सारी जानकारी सार्वजनिक करनी होगी। तीन हफ्ते के भीतर ये जानकारी इलेक्शन कमिशन को देगा और इलेक्शन कमिशन इसे सार्वजनिक करेगा, साझा करेगा। इस सूचना को यानी 12 अप्रैल 2019 से कितने लोगों ने कितने बॉन्ड्स खरीदे। कितने कितने रुपए के और किन किन ने खरीदे और किन किन के खाते में जमा करने के लिए किन को राजनीतिक चंदा देने के लिए बांड खरीदे, उन सारे बॉन्ड्स पर वो जानकारी देनी होगी।
यानी 2019 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अप्रैल में किन लोगों ने किन पार्टियों के लिए बॉन्ड्स खरीदे हैं और कहाँ जमा किए वो तमाम जानकारियां यानी पिछले 5 साल की जानकारी देनी पड़ेगी जिसे पता चलेगा कि आखिर सरकार को समर्थन देने वाले आर्थिक समर्थन देने वाले या बी जे पी को एन डी ए को आर्थिक समर्थन देने वाले लोग कौन हैं।
और इसके बाद फिर आगे जो उसकी व्याख्या होगी वो तो आप जान सकते हैं। ये आर्थिक मामला जरूर है, कानूनी मामला जरूर है लेकिन इसकी व्याख्या राजनीतिक आधार पर होगी और यह बताया जाएगा कि किन को समर्द किनको चंदा दिया गया और उसका क्या काम कराया गया। उनका तो यह तमाम चीजें जीस समय सुनवाई चल रही थी। उस समय भी यह सारी चीजें वहाँ पर यह कहा गया था कि जो कॉर्पोरेट कंपनियां चंदा देती है राजनीतिक पार्टियों को उन लोगों को जो या तो ऑलरेडी सत्ता में है या फिर जिनके सत्ता में आने की संभावना है तो फिर बाद में सत्ता में आने के बाद वो उनसे अपने काम कराती है।
निर्णय साफ है कि पाँचों जजों ने एक साथ मिलके इसे असंवैधानिक माना है और ये कहा है कि काले धन का इस्तेमाल राजनीति में और चुनाव में रोकने के लिए दूसरे विकल्प आजमाएं।
2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड को लागू करने के पीछे मोदी सरकार का मत था कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी ,साफ सुथरा धन आएगा। इसमें व्यक्ति, कॉर्पोरेट और संस्थाओं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती थी और राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर हासिल करते थे।
भारतीय स्टेट बैंक की 29 शाखाओं को इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने और उसे भुनाने के लिए अधिकृत किया गया था। केंद्र सरकार ने इस दावे के साथ बॉन्ड की शुरुआत की थी कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता ट्रांसपेरेंसी बढ़ेगी और साफ सुथरा पैसा आएगा। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि ये सूचना के अधिकार के खिलाफ़ है।